पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले पटना विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव हो रहे हैं। तीस वर्षों में दूसरी दफे होने वाले इस चुनाव में छात्र संगठनों की सरगर्मी काफी तेज है। 17 फरवरी को छात्रसंघ के चुनाव होने हैं और इसी दिन शाम में चुनाव परिणाम घोषित हो जायेंगे। पिछला चुनाव 2012 में हुआ था जिसमें अध्यक्ष व महासचिव पद पर क्रमषः ए.बी.वी.पी और ए.आई.एस.एफ को जीत हासिल हुई थी। इस वर्ष पटना विश्वविद्यालय भी अपने स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर रहा है। विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों के साथ-साथ बिहार के प्रमुख सियासी दल भी इसमें अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। पटना का आम नागरिक समाज भी इस चुनाव को दिलचस्पी के साथ देख रहा है।

1984 में पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महासचिव प्रेमकांत सिन्हा की हत्या कर दी गयी थी । फिर अगल अठाइस सालों तक चुनाव नहीं हुए । 1990 के बाद बिहार की राजनीति को प्रभावित करने वाले लगभग सभी महत्वपूर्ण राजनेता छात्रसंघ के पदाधिकारी रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद तो छात्र संघ के अध्यक्ष ही रह चुके हैं। वर्तमान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुषील मोदी व केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भी पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के सेंट्रल पैनल के पदाधिकारी रह चुके हैं।


आजादी के बाद सबसे बड़े जनांदोलन, जिसे 1974 का छात्र आंदोलन भी कहा जाता है , में ‘पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ’ की निर्णायक भूमिका थी। इस आंदोलन का नेतृत्व जयप्रकाश नारायण ने किया था। 1974 के इस एतिहासिक छात्र आंदोलन ने संपूर्ण क्रांति की जोरदार मांग उठायी थी। फलतः इस आंदोलन को दबाने के लिए 1975 में इमरजेंसी तक लागू करना पड़ा था।

स्वतंत्रता के पष्चात देश में पहली बार पटना विश्वविद्यालय में ही छात्रों पर पुलिस द्वारा गोली चली। 1955 के इस गोलीकांड में बी.एन.कॉलेज के छात्र दीनानाथ पांडे मारे गए थे। छात्रों पर गोली चलने की इस घटना ने इतना तूल पकड़ लिया भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को पटना आने पर मजबूर होना पड़ा था।

इस बार प्रमुख वाम छात्र संगठन आइसा और ए.आई.एस.एफ एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा अन्य वामछात्र संगठनों मसलन ए.आई.डी.एस.ओ, पी.डी.एस.एफ, दिशा छात्र संगठन ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं। छात्र राजद व एन.एस.यू आई खुद को महागठबंधन कह रहा है । दिलचस्प ये है कि बिहार की सत्ता में एक साथ रहने वाली जदयू व भाजपा गठबंधन के छात्र संगठन छात्र जद ; यू एवं ए.बी.वी.पी चुनाव मैदान में अलग-अलग हैं। पप्पू यादव के जनाधिकार छात्र परिषद्, जीतन राम मांझी के हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के छात्र संगठनों के अतिरिक्त आंबेडकरवादी छात्र संगठनों ने भी खम ठोंका हुआ है। निर्दलीय भी जोर अजमाइश कर रहे हैं। कुछ राजनीतिक दल लोकसुभावन वादे भी कर रहे हैं। एक दल के नेता ने कैंपस के बाहर सस्ते दर पर खाने के लिए एक दुकान ही खोल रखी है।

छात्रसंघ चुनाव में एकेडमिक कैलेंडर को सही ढ़ंग से लागू करना, छात्रों की सुरक्षा, शिक्षकों के खाली पदों पर भर्ती के अलावा कैंपसों के भगवाकरण, शिक्षा के बजट में कटौती आदि मुद्दे उठाए जा रहे हैं। मोटे तौर पर देखें तो बाकी कैंपसों की तरह यहॉ भी मुख्य संघर्ष वाम व दक्षिण विचारदृष्टि के बीच है।

पटना विश्वविद्यालय में अब छात्राओं की संख्या में काफी इजाफा हो चुका है। इस कारण कई छात्र संगठनों ने छात्राओं को अपना उम्मीदवार बनाया है।

इस बार का चुनाव एक ऐसे वक्त में संपन्न हो रहा है जब अधिकांश छात्र कैंपस व हॉस्टलों से बाहर रहे हैं। छात्र अपनी परीक्षा की तैयारी में मशगूल हैं। इस कारण छात्र संगठनों को छात्रों से संपर्क करने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। कॉलेज के बजाए छात्रों से उनके हॉस्टलों में संपर्क करने का प्रयास करना पड़ रहा है। परीक्षा के कारण छात्रसंघ चुनाव पर रोक के लिए पटना उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की गयी थी। लेकिन न्यायालय ने इस याचिका को अगले हफ्ते तक के लिए टाल दिया है ताकि चुनाव तब तक संपन्न हो जाए।

ये चुनाव लिंग्दोह कमिटी की सिफारिषों के अनुसार हो रहा है। कई तरह की बंदिशें भी लागू हैं ।मसलन पर्चा नहीं छपवा सकते, पर्चों की जगह सिर्फ फोटोकॉपी ही वितरित किए जा सकते है। सेंट्रल पैनल के उम्मीदवार चुनाव प्रचार के लिए अधिकतम 5000 रूपये खर्च कर सकेंगे। छात्रों के हॉस्टल में रात 10 बजे तथा लड़कियों के हॉस्टल में शाम 6 बजे तक चुनाव प्रचार की अनुमति है।

17 फरवरी को होने वाले मतदान के लिए प्रेसिडेंशियल डिबेट संपन्न हो चुका है और चुनाव प्रचार थम भी चुका है। सभी छात्र संगठन अंतिम समय की तैयारियों में व्यस्त है। केाई भी अपनी तरफ से कुछ कसर नहीं छोड़ना चाहता ।