महाराष्ट्र में भाजपा से अलग चुनावी राह पर शिवसेना
महाराष्ट्र में भाजपा से अलग चुनावी राह पर शिवसेना
शिवसेना ने 2019 के चुनाव अब अपने दम पर लड़ने की घोषणा कर दी है। इससे 2019 के चुनावी दंगल काफी रोमांचक होंगे। भाजपा को चुनावी मैदान में विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ शिवसेना से भी मुकाबला करना पड़ेगा। खासकर महाराष्ट्र में भाजपा को शिवसेना से चुनौती मिलेगी। शिवसेना का जनाधार महाराष्ट्र में है।
मराठी माणुस पर शिवसेना सुप्रीमो दिवंगत बाल ठाकरे के प्रभाव की वजह से महाराष्ट्र की सत्ता दोबारा हासिल करने के लिए भाजपा को काफी जद्दोजहद करनी पड़ेगी।
फिलहाल शिवसेना एनडीए का हिस्सा है और केंद्र के अलावा महाराष्ट्र में भी भाजपानीत सरकार में सत्ता का सुख ले रही है। बावजूद इसके शिवसेना ने 2019 के चुनाव अकेले लड़ने का फैसला क्यों लिया? यह बड़ा सवाल है। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में लिए गए इस फैसले के बाद शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने औरंगाबाद की एक सभा में अपने फैसले के पीछे का सच जाहिर किया। उन्होंने महाराष्ट्र की जनता के सामने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि 25 सालों से हमने भाजपा की मदद की, लेकिन भाजपा हमें मिटाने का काम कर रही है।
जब तक सच्चे शिवसैनिक हैं हम मिटने वाले नहीं हैं। हम अकेले चुनाव लड़ेंगे और चुनाव जीतेंगे। भाजपा को पता है कि चुनाव में कौन किससे आगे निकलेगा? हालांकि, भाजपा ने मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में अपनी पकड़ मजबूत की है। मुंबई महानगर पालिका के चुनावों में भी भाजपा ने 82 सीटें हासिल करके शिवसेना को बड़ा झटका दिया था।
मुंबई महानगर पालिका पर शिवसेना का दो दशकों से राज रहा है और इस बार चुनाव में उसे भाजपा से दो सीटें ज्यादा यानी 84 सीटें ही मिल पाई। शिवसेना के लिए यह खतरे की घंटी और भविष्य को लेकर चिंता की बात थी। इससे पहले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने 23 सीटों पर कब्ज़ा कर लिया था और शिवसेना को 18 सीटें मिली थी।
शिवसेना और भाजपा के बीच खटास कोई नई बात नहीं है। सीनियर ठाकरे के जमाने में भी भाजपा कंगारू वाली छलांग लगाने की कोशिश करती रही है। लेकिन अपनी ताकत को देखते हुए खुद को छोटा भाई और शिवसेना को बड़ा भाई मान लेती थी। भाजपा में बड़ा बदलाव तब देखा गया जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़े जाने की तैयारी की गई।
चुनावी रणनीति के साथ भाजपा ने 2014 में लोकसभा के चुनाव शिवसेना को लेकर लड़ तो ली मगर महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में शिवसेना को एहसास कराया गया कि अब उसका ओहदा छोटे भाई का हो गया है जिसे शिवसेना आज तक स्वीकार नहीं कर पा रही है । विधानसभा के चुनाव में भाजपा से गठबंधन के बिना ही उद्धव ठाकरे ने 63 सीटों पर जीत हासिल करके जता दिया कि शिवसेना अब भी जमीन की पार्टी है।
हालांकि, भाजपा 122 सीटों पर कब्जा करके महाराष्ट्र में बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बावजूद इसके पांच साल सरकार चलाने के लिए उसे शिवसेना का ही सहारा लेना पड़ा। इन राजनीतिक स्थितियों से वाकिफ उद्धव ठाकरे आज भी भाजपा को संदेश देते हैं कि केंद्र तुम संभालो और राज्य हमारे पास रहने दो। मगर यह फार्मूला भाजपा को मंजूर नहीं है।
अब तो कतई नहीं, जब मोदी का जादू पूरे देश में होने का प्रचार जोरों पर है। ऐसा भाजपा के लोग भी मानते हैं। यह दीगर बात है कि गुजरात जैसे राज्य में भाजपा को कुछ सीटें कम मिली पर सत्ता हाथ से गई नहीं।
गुजरात विधानसभा और राजस्थान के उपचुनावों के नतीजों को शिवसेना भी गंभीरता से ले रही है और यह माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है। इसके साथ ही महाराष्ट्र में किसानों की समस्याएं और दलितों पर हमले की घटनाएं अगले चुनावों में भाजपा को भारी पड़ सकती है। इसलिए शिवसेना सचेत है और किसानों एवं दलितों के दुख में साथ है।
सरकार में रहते हुए शिवसेना के विरोधी तेवर से देवेंद्र फडणवीस सरकार भी परेशान है। कांग्रेस और एनसीपी भी शिवसेना पर सरकार से बाहर आने के लिए लगातार दवाब बनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन शिवसेना अपनी चाल चल रही है। वह सरकार में रहकर राज्य के किसानों, दलितों और मराठी माणुसों के बीच अपनी अलग छवि बनाने में लगी हुई है। उसे इसका फायदा चुनावों में मिल सकता है, ऐसा शिवसेना के कुछ नेताओं का भी मानना है।
शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दे पर भी भाजपा के साथ रही है। लेकिन अगले चुनावों में शिवसेना इस मुद्दे पर भाजपा के साथ नहीं रहेगी। कश्मीर के मुद्दे पर भी शिवसेना मोदी सरकार पर हमला करने से नहीं चूकती है।
शिवसेना और भाजपा अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की चालें चल रही हैं। फडणवीस सरकार में भी भाजपा का रूख शिवसेना के मंत्रियों के प्रति ज्यादा बेहतर नहीं है। इसकी शिकायत शिवसेना के मंत्री पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से करते रहते हैं। शिवसेना के मंत्रियों का कहना है कि उन्हें विभागीय काम करने की पूरी आजादी नहीं है। फाइलें अटकी पड़ी रहती हंै जिससे जनता का काम नहीं हो पाता है।
दूसरी तरफ शिवसेना की रणनीति को समझते हुए भाजपा उन इलाकों को मजबूत करने में जुटी हुई है जहां वह खुद को शिवसेना से कमजोर महसूस कर रही है। कोकण क्षेत्र को मजबूत करने के लिए पूर्व शिवसेना नेता नारायण राणे को भाजपा में शामिल कर लिया गया है जिससे शिवसेना में नाराजगी है और राणे को अब मंत्री पद पाने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है।
राजनीति के हाशिये पर खड़ी कांग्रेस और एनसीपी को शिवसेना के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से अपना भविष्य भी दिखने लगा है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने तो शिवसेना से हाथ मिलाने के भी संकेत दे दिए हैं। इसका फायदा शिवसेना को चुनाव के बाद महाराष्ट्र में गैरभाजपा सरकार बनाने में मिल सकता है। लेकिन यह अभी दूर की बात है। इस समय तो भाजपा और शिवसेना अपनी ताकत बढ़ाने में जुटी हुई है।
ग्रामीण क्षेत्रों में शिवसेना अपनी पकड़ मजबूत कर रही है तो भाजपा मुंबई, ठाणे और कोकण इलाकों में खुद को सुरक्षित करने में लगी हुई है। भाजपा को मालूम है कि अगर महाराष्ट्र की सत्ता में दोबारा आना है तो इन्हीं इलाकों को मजबूत किया जाए। विदर्भ तो भाजपा के पास है ही जबकि शिवसेना वहां कमजोर है। वैसे,अलग विदर्भ का मुद्दा अभी ठंडा पड़ा हुआ है। बावजूद इसके शिवसेना और भाजपा अपने राजनीतिक समीकरण के हिसाब से काम कर रही है ।