राजस्थान के मुस्लिम समुदाय में कांग्रेस को लेकर संशय बरकरार
राजस्थान के मुस्लिम समुदाय में कांग्रेस को लेकर संशय बरकरार
ज्यों ज्यों आम विधान सभा चुनाव नजदीक आते जा रहे है, त्यों त्यों राजस्थान मे कांग्रेस पार्टी के ऊपरी तौर पर बनने वाले थींक टैंक व पोलीसी से मुसलमान अलग थलग होते दिखने के चलते उनके दिलो मे एक अजीब सा संशय पैदा होने लगा है कि भाजपा की नीतियो के चलते मुसलमानों की खूद चलकर कांग्रेस के पक्ष मे मतदान करने आना उनकी मजबूरी होगी ?
नवम्बर-18 मे होने वाले आम विधान सभा चुनाव के पहले राजस्थान मे संगठन स्तर पर प्रदेश व राष्ट्रीय समिति के सदस्यो मे मुस्लिम को कोई महत्व नही मिला है। दुसरी तरफ अक्सर विधान सभा चुनावो मे 16-से 18 तक टिकट मुसलमानों को देने वाली कांग्रेस अब के अधिकतम सात से आठ टिकट मुस्लिम को देगी उनमे भी नाम नियाद व हवाई नेता अधिक शुमार माने जा रहे है। कांग्रेस के अनेक नेताओ के मुख से सूना जाता रहा कि मुस्लिम उम्मीदवार फलां जगह से जीत नही पाता है क्योंकि उन्हे बहुसंख्यक मत मिलना काफी मुश्किल होता है। जबकि ऐसे हर बहुसंख्यक नेता उस क्षेत्र से टिकट पाने मे पुरा दम लगाते आ रहें हैं जहां पर मुस्लिम मतों की तादात अच्छी खासी होती है। इतिहास पर नजर डालें तो पाते है कि सरदार पुरा से विधान सभा चुनाव लड़कर विधायक बनने वाले कांग्रेस नेता अशोक गहलोत तो मुस्लिम मत लेकर हमेशा विधायक बनते रहे हैं। लेकिन उनके एकदम लगती सीट सूरसागर पर हमेशा गहलोत की मेहरबानी से सईद अंसारी को टिकट तो मिलती रही है। लेकिन गहलोत उन्हे बहुसंख्यक मत दिलाने मे सफल नही होने से अंसारी हर दफा चुनाव हारते आ रहे है। यह उदाहरण केवल गहलोत का ही नही है बल्कि अधिकांश कांग्रेस नेताओ की हालत ऐसी ही बनी हुई है। जबकि कांग्रेस को मरहुम नाथूराम मिर्धा जैसे नेताओ की आज सख्त जरुरत है जो मत ले भी और मत दिलाने की ताकत भी रखते हो। दूसरी तरफ गुजरात चुनावों मे मुस्लिम मतदान जो पहले 35-40 प्रतिशत हुआ करता था। जो पिछले चुनाव मे काफी जदोजहद के बाद 55 प्रतिशत ही मतदान बढ पाया था। अगर यही मुस्लिम मतदान प्रतिशत 80 से 85 प्रतिशत हो जाता तो कांग्रेस की सरकार बनना निश्चित था। लेकिन मुस्लिमों मे छायी उदासीनता व मतदान के प्रति निष्क्रियता ने सारा बेड़ा गर्क कर दिया। उदासीनता का प्रमुख कारण उनकी आवाज को दबाना व उचित प्रतिनिधित्व ना मिलना ही माना जा रहा है।
यह हक्रीकत है कि भाजपा की तरफ से जहां मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी मैदान मे होता है उस सीट को छोड़कर बाकी जगह भाजपा को मुस्लिम वोट मिलना जरा टेडी खीर माना जाता है। लेकिन सीकर मे राजेन्द्र पारीक जैसे प्रदेश मे अन्य जगह बतौर कांग्रेस उम्मीदवार मैदान मे होने पर मुस्लिम मतदाता गड़तुमा खाने यानि कड़वा घूंट पीते हुये दूसरे उम्मीदवार या फिर कुछ प्रतिशत मत भाजपा को देकर अपना हिसाब चुकता करने मे कोई कसर नही छोड़ता है। नवम्बर मे होने वाले आम विधान सभा चुनावों मे काग्रेस पार्टी इस वहम में रहकर खुशी मना सकती है कि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को वोट करना मुसलमान की मजबूरी होगी। इसमे काफी हद तक सच्चाई भी हो सकती है। लेकिन मत वो ही गिनती मे शुमार होता है जो मतदाता मतदान तक जाकर ईवीएम का बटन दबा कर आता है। अगर मुस्लिम मतदाताओ में मतदान के प्रति उदासीनता या जरा भी नकारापन का आलम छा गया तो मानो कांग्रेस की डगर बडी मुश्किल हो सकती है। दुसरी तरफ पहलू खान व अफराजूल की हत्या सहित अनेक अवसरो पर कांग्रेस की पूरी तरह चुप्पी धारण करने को लेकर भी समुदाय में कांग्रेस के प्रति बैचेनी कायम है।
कुल मिलाकर यह है कि काग्रेस को नवम्बर-18 के आम चुनाव मे राजस्थान मे अपनी जीत का परचम लहराने के लिये पहले पहल अपने मुस्लिम कार्यकर्ताओ को ठीक से जगह देकर उनके मनोबल को ताकत देनी चाहिये। ताकि वो फिल्ड में जाकर 16 से 18 प्रतिशत मतों वाले मुस्लिम समुदाय मे छायी उदासीनता व निष्क्रियता को दूर करके पार्टी हित में बेहतर काम करके जीत के रिजल्ट लाने मे महत्ती भुमिका निभा सके। दुसरी तरफ ऐसा माहोल बनाने से कांग्रेस नेताओ को बचना होगा कि जिससे मुस्लिम समुदाय को यह ना लगे कि वो अब कांग्रेस मे अलग थलग पड़ते जा रहे हैं। अन्यथा उस हालात मे मुस्लिम मतदाता चाहे भाजपा के पक्ष मे मतदान ना करे लेकिन वो तीसरे अपने निर्दलीय या अन्य पार्टी उम्मीदवार को वोट करके कांग्रेस उम्मीदवारों को हार की तरफ धकेलने मे सहयोगी बन सकता है।