“इस कार्रवाई का संबंध सनातन संस्था से है, न कि माओवादियों से” : प्रकाश अम्बेडकर
बुद्धिजीवियों के घरों में मारे गये छापों की चौतरफा आलोचना
महाराष्ट्र के दलित नेता प्रकाश अम्बेडकर का साफ़ मानना है कि महाराष्ट्र, गोवा, दिल्ली और हैदराबाद आदि जगहों पर बुद्धिजीवियों के घरों में मारे गये छापों का संबंध सनातन संस्था और कर्नाटक सरकार द्वारा तर्कवादी और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामले में की जा रही छानबीन से है. सामाजिक कार्यकर्ता और कवि वरवर राव को कथित रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश में शामिल होने के जुर्म में हैदराबाद में गिरफ्तार किया गया. पुलिस को श्री राव का नाम भीमा कोरेगांव की लड़ाई (1818) के 200 साल पूरे होने की स्मृति में पिछले 31 दिसम्बर को आयोजित यलगार परिषद की घटना के बाद गिरफ्तार लोगों की तलाशी के दौरान बरामद की गयी एक चिट्ठी में मिला था.
श्री अम्बेडकर ने द सिटिज़न को बताया, “छानबीन के दौरान सनातन संस्था और उसकी गतिविधियों के बारे में मिले सबूतों के आधार पर कर्नाटक सरकार पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र सरकार पर कार्रवाई करने का दबाव बना रही थी. कर्नाटक सरकार ने पाया कि संस्था मुंबई के ही विभिन्न इलाकों में इस्तेमाल के लिए बम बना रही है. और इनमें से कई इलाके अल्पसंख्यक आबादी वाले नहीं, बल्कि हिन्दू बहुल हैं. फडनवीस सरकार के लिए इस तथ्य को स्वीकार करने का मतलब संस्था को हिन्दू - विरोधी घोषित करने जैसा होता, जोकि भाजपा साफ़ तौर पर नहीं करना चाहती. इसलिए संस्था की ओर से ध्यान भटकाने के उद्देश्य से उन्होंने सभी अति – वामपंथी बुद्धिजीवियों को उठाया है और देश को इन अति – वामपंथी बुद्धिजीवियों से खतरा होने का राग अलाप रहे हैं.”
श्री अम्बेडकर की बात का समर्थन करते हुए सीपीएम के वरिष्ठ नेता प्रकाश करात ने कहा कि इस किस्म की कार्रवाई सनातन संस्था जैसे दक्षिणपंथी संगठनों की गतिविधियों को ढकने का एक प्रयास है. हत्या की घटनाओं की कर्नाटक द्वारा की जा रही छानबीन से जिस किस्म के खुलासे हो रहे हैं उसे देखते हुए आम तौर पर सरकार को सनातन संस्था को प्रतिबंधित करने का कदम उठाना पड़ता. द सिटिज़न से बात करते हुए श्री करात ने कहा, “गैर – कानूनी गतिविधि (निषेध) कानून के तहत इस किस्म के संगठनों को प्रतिबंधित करने का प्रावधान है. लेकिन अब वे इन्हीं प्रावधानों का इस्तेमाल कर बुद्धिजीवियों को यह कहते हुए निशाना बना और गिरफ्तार कर रहे हैं कि उनका संबंध माओवादियों से है.” उन्होंने बताया कि इसके खिलाफ दिल्ली में गुरुवार को एक विशाल प्रदर्शन की योजना बनायी जा रही है.
श्री अम्बेडकर एवं श्री करात, दोनों, ने कहा कि देश के विभिन्न शहरों में बुद्धिजीवियों के घरों में पुलिस भेजकर उन्हें निशाना बनाने का मकसद दलितों को अलग – थलग कर उनपर हमला करना है. श्री अम्बेडकर ने महाराष्ट्र सरकार के इस दावे को सिरे से ख़ारिज किया कि गिरफ्तार सारे लोग भीमा कोरेगांव की रैली आयोजित करने वाले यलगार – परिषद के सदस्य थे. उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक दिन का मामला था और ख़त्म हो गया.”
उनकी नजर में रैली के आठ महीने के बाद की गयी इन गिरफ्तारियों का मकसद समाज और आगे बांटने के साथ – साथ इस बात पर जोर देना है कि हिंसा के पीछे माओवादी हैं, न कि दक्षिणपंथी संगठन. उनके मुताबिक भीमा कोरेगांव में दक्षिणपंथी संगठनों ने हिंसा भड़काई थी. श्री अम्बेडकर उनलोगों में से एक थे जिन्होंने पुणे के निकट भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी को दलितों के साथ की गयी हिंसा के बाद मुंबई में एक विशाल विरोध – प्रदर्शन आयोजित किया था और सरकार से दलितों के खिलाफ हिंसा के लिए कथित रूप से जिम्मेदार शिव प्रतिष्ठान हिन्दुस्तान के प्रमुख संभाजी भिड़े की गिरफ़्तारी की मांग की थी.
चुनावों से पहले दलितों की भारी नाराजगी और मराठों के एक मजबूत आंदोलन का सामना कर रही महाराष्ट्र सरकार इन गिरफ्तारियों का इस्तेमाल मराठों का समर्थन वापस पाने और इस बात पर जोर डालने के लिए कर रही है कि हिंसा के पीछे दक्षिणपंथी संगठनों के बजाय माओवादी और उनसे “सहानुभूति रखने वाले लोग” थे.
श्री करात ने कहा कि इस कार्रवाई के पीछे हिंसा भड़काने वाले तत्वों को बचाने और रैली के आयोजकों को निशाना बनाने का इरादा था. साथ ही, इस झूठ को भी फैलाना था कि आतंक और हिंसा माओवादियों एवं उनसे “सहानुभूति रखने वाले लोगों”, खासकर गिरफ्तार किये गये बुद्धिजीवियों, की ओर से हुई थी. उन्होंने आगे कहा कि इस प्रकार का कदम अपने – आप में उस “घोर दलित विरोधी मानसिकता” का परिचायक है, जो दलित समुदाय और उनके हितों को रौंदने में यकीन रखता है.
पुणे पुलिस ने पांच शहरों में नौ सामाजिक कार्यकर्ताओं के घरों में छापा मारा. गिरफ्तार किये गये पांच लोगों में से दो – गौतम नवलखा और सुधा भारद्वाज - के मामले में अदालत ने अस्थायी रोक लगायी. इन छापों ने लोगों को हतप्रभ कर दिया है. कई लोगों ने इसकी तुलना “आपातकाल” से की है.
गिरफ्तार किये गये लोगों में माओवादी विचारक वरवर राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज के साथ – साथ अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वेनन गोंसाल्वेस जैसे सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं. ये छापे दिल्ली, फरीदाबाद, गोवा, मुंबई, रांची और हैदराबाद में मारे गये.
सामाजिक कार्यकर्ता और कवि वरवर राव को कथित रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश में शामिल होने के आरोप में हैदराबाद में गिरफ्तार किया गया. पुलिस का दावा है कि उनका नाम उस चिठ्ठी में सामने आया जिसे भीमा कोरेगांव की लड़ाई (1818) के 200 साल पूरे होने की स्मृति में आयोजित यलगार परिषद की घटना के बाद गिरफ्तार लोगों की तलाशी के दौरान बरामद किया गया था.
सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा और वेनन गोंसाल्वेस को क्रमशः ठाणे और मुंबई से गिरफ्तार किया गया. मानवाधिकार अधिवक्ता सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद स्थित उनके आवास से उठाया गया. गौतम नवलखा को पुणे ले जाने के ट्रांजिट रिमांड पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने 30 अगस्त तक के लिए रोक लगा दी है. तबतक वे अपने आवास में पुलिस के पहरे में रहेंगे और सिर्फ अपने वकीलों से मिल सकेंगे. फादर स्टन स्वामी के यहां रांची में और तेलंगाना की क्रांति के घर पर भी छापे डाले गये. आनंद तेलतुम्बडे के गोवा स्थित आवास पर भी छापा मारा गया, लेकिन वो घर पर नहीं थे. इन लोगों के लैपटॉप, पेन ड्राइव और कई दस्तावेज जांच के लिए जब्त कर लिए गये हैं.