“मुझे एवं अन्य लोगों को अपराधी ठहराने के लिए है यह फर्जी चिट्ठी”
सुधा भारद्वाज
“पुणे पुलिस द्वारा प्रेस को जारी चिट्ठी के संबंध में”
1. यह मुझे तथा मानवाधिकार के लिए लड़ने वाले अन्य वकीलों, कार्यकर्ताओं एवं संगठनों को अपराधी ठहराने के लिए तैयार की गयी एक पूरी तरह से मनगढंत और फर्जी चिट्ठी है.
2. यह निर्दोष एवं सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तथ्यों और आधारहीन फर्जी बातों का मिश्रण है. बैठकों, संगोष्ठियों और विरोधों जैसी विभिन्न कानूनी और लोकतांत्रिक गतिविधियों को माओवादियों द्वारा वित्त पोषित होने का आरोप लगाकर उन्हें गैरकानूनी करार देने का प्रयास किया गया है.
3. मानवधिकार के लिए लड़ने वाले कई वकीलों, कार्यकर्ताओं एवं संगठनों के नाम जानबूझकर उन्हें बदनाम करने, उनके काम में बाधा डालने और उनके खिलाफ नफ़रत भड़काने की नीयत से लिए गये हैं.
4. यह वकीलों के संगठन आईएपीएल, जिसके अध्यक्ष अवकाश प्राप्त न्यायधीश न्यायमूर्ति होस्पेट सुरेश हैं और जो वकीलों पर हमलों के खिलाफ मुखर है, को अवैध करार देने का एक प्रयास है.
5. मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहती हूं कि मैंने मोगा में किसी कार्यक्रम के आयोजन के लिए कभी भी 50,000/- रूपए नहीं दिए. और न ही मैं किसी “महाराष्ट्र के अंकित” या “कश्मीरी अलगाववादियों से संपर्क रखने वाले किसी कॉ. अंकित” को जानती हूं.
6. मैं गौतम नवलखा को जानती हूं, जो कि एक वरिष्ठ एवं सम्मानित मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और उनका नाम उन्हें अपराधी ठहराने और उनके खिलाफ नफ़रत भड़काने के लिए लिया गया है.
7. मैं जगदलपुर लीगल एड ग्रुप को अच्छी तरह से जानती हूं और उनके या किसी भी प्रतिबंधित संगठन से लिए कभी भी धन का अनुरोध नहीं किया है. मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहती हूं कि उनका काम पूरी तरह से वैध और कानूनी है.
8. मैं अधिवक्ता डिग्री प्रसाद चौहान, जो एक दलित मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और पीयूसीएल में सक्रिय हैं तथा ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के साथ मिलकर काम करते हैं, को जानती हूं. उनके खिलाफ पूरी तरह से निराधार आरोप लगाये गये हैं.
9. यह छत्तीसगढ़ के बस्तर में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन का खुलासा करने वाले विभिन्न वकीलों, कार्यकर्ताओं और संगठनों को अपराधी ठहराने और उनके खिलाफ घृणा भड़काने का एक प्रयास है.
मैं पुनः दोहराती हूं कि यह एक फर्जी चिट्ठी है, जिसका खंडन मैं 4 जुलाई को रिपब्लिक टीवी पर दिखाये जाने के समय कर चुकी हूं. मुझे पुणे ले जाने की अर्जी के साथ इस चिट्ठी को न तो पुणे के न्यायालय में और न ही फरीदाबाद के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया गया है.
सुधा भारद्वाज
दिनांक 31. 08. 2018
मेरी अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर के द्वारा