बस्तर: (दिल्ली में डाक्टरी के पेशे से मुक्त होकर आशु कबीर इन दिनों बस्तर में हैं। बस्तर और बाजार के जीवन के अंतर्विरोधों को उन्होने शिद्दत से महसूस किया है।तीन किस्तों में उनके अनुभवों को यहां साझा कर रहे हैं। )

अगर जीवन को तलाशना है तो एक बार बस्तर की यात्रा जरूर करनी चाहिए। यह यात्रा आपके जीवन को नया संदर्भ देगी। उस जंगल को जरा ठहरकर देखिए, उससे बात कीजिये, उसकी धड़कनों को सुनिये , उसके अंदाज को समझने का थोड़ा सा ही सही मगर जतन जरूर कीजिये।

जिनके अदम्य साहस, जीवन की सादगी, उत्साह और उमंग से हमें सिखना चाहिए, उन्हें हम पिछड़ा और असभ्य कहकर अपनी सीमित समझ का ही परिचय देते हैं।


बस्तर क्षेत्र में जीवन के असली नाटक बिखरे पड़े हैं; बस एक हौसला, मन में उत्साह और जानने की उत्सुकता होनी चाहिए। इन्हीं नाटकों से एहसास होता है कि हम अब तक जिंदा है।

जब बस्तर के जंगलों से होते हुए गुजरेंगे तो यहां मुरिया, माड़िया,हल्बी, गोंड़ ओर बैगा जनजातियों से मिलेंगे ।उनके जीवन को देखेंगे तो उनको जानने- समझने का प्रयास करेंगे ।

अदिवासियों के सरल, सहज और सादगीपूर्ण जीवन को देखेंगे, अनुभव करेंगे और जब उसकी तुलना सुदूर शहरों के जीवन से करेंगे तो पायेंगे कि सुदूर शहरों में हम दिखावे की झूठी जिंदगी जी रहे हैं। और यही बाजार का जीवन होता है ।इस बाजार की चकाचौंध में हम अपनी मूल प्रकृति को भुला रहें हैं। जैसे ही वो चमक- धमक गायब होती है हमारा जीवन अशांति, बैचेनी से भर जाता है। आज 90 प्रतिशत से ज्यादा पढ़े लिखे लोग किसी न किसी मानसिक व्याधि के शिकार है। लेकिन आदिवासी अपने जीवन मे शांत और अपनी मूल प्रकृति के साथ रहते हैं। उनको न जीवन से कोई शिकायत है, न कोई पश्चाताप और न ही किसी प्रकार का कोई मानसिक विषाद। जबकि हमने उनके जंगल के अधिकारों को भी सीमित कर दिया है जो उनकी जीवन और अस्मिता का आधार है। फिर भी, वो वैसा ही जीवन जीते हैं।


बस्तर के आदिवासी आपसे बात करते हुए शर्माएंगे।आपसे नजरें भी नही मिलाएंगे। झिझकेंगे लेकिन आपको गले लगाएंगे। आपको अपने दिल मे बिठाएंगे। वे अपना सब कुछ आपको दे देंगे जो भी उनके पास है। जबकि हम लोग किसी से मिलने पर तुरंत अपनी घड़ी की तरफ देखते हैं। अगर बिना अनुमति के मिलने आया है, तो मिलने का कारण जानना चाहेंगे । जंगलों में रहने वाले इन लोगों की जीवनशैली में गजब की सहयोग की भावना को आप देख पाएंगे और ये महसूस कर पाएंगे कि सामाजिक मेलजोल का इससे अच्छा उदाहरण और कोई नही हो सकता ।हम लोग "मैं" को लेकर आगे बढ़ते जाते हैं। और जब ये अहसास होता है कि मैं तो भ्रम में था तब तक जिंदगी कहीं पीछे छूट जाती है। हमारे संबंधों में अपनी प्रकृति से एक अलगाव की स्थिति पैदा होती है, टूटन की स्थिति पैदा होती है।


पहले 20 साल की बेमन की पढ़ाई फिर 20 साल की बेमन की नौकरी और जब एहसास होता है तब तक जीवन बीत जाता है। वे लोग हर दिन को उत्सव की तरह से जीते हैं। यह बात वे बेशक नहीं कहते लेकिन शायद उनकी समझ यही रहती है कि आज का दिन जिंदगी का अंतिम दिन है ।इसे जियो, आने वाले को बाद में देखेंगे।