भारत में बंग्लादेशी व बंग्लादेश में रोहिंग्या

भारत में बंग्लादेशी व बंग्लादेश में रोहिंग्या

Update: 2017-11-10 11:45 GMT

भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार रोहिंग्या भारत में शरणार्थी नहीं बल्कि अवैध घुसपैठिए हैं। अपने कथन को जायज ठहराने के लिए वे कहते हैं कि रोहिंग्या लोगों ने भारत में शरण लेने के लिए कोई आवेदन नहीं किया है।

अब पूरी दुनिया देख रही है कि किन परिस्थितियों में रोहिंग्या म्यांमार से अपनी जान बचा कर भाग कर आ रहे हैं। जब उनकी प्राथमिकता अपने परिवार के एक साथ व जिंदा रखना है तो क्या राजनाथ सिंह कल्पना करते हैं कि रोहिंग्या लोग म्यांमार या ढाका के भारतीय दूतावास जाकर भारत में शरण लेने के लिए आवेदन जमा करेंगे? भारत अपने यहां आए सभी 40,000 रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेजना चाहता है। किंतु यह उस अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत का उल्लंघन होगा जिसमें यदि किसी का किसी देश में स्वागत नहीं है वहां उसे जबरदस्ती नहीं भेजा जाए।

किंतु राजनाथ सिंह का कहना है कि चूंकि हमने संयुक्त राष्ट्र संघ की शरणार्थियों सम्बंधी संधि पर दस्तखत नहीं किए हैं इसलिए हम यदि रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेजते हैं तो हम किसी अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं करेंगे। राजनाथ सिंह तकनीकी तर्क की आड़ लेना चाहते हैं किंतु क्या यह किसी ऐसे देश की भूमिका हो सकती है जो अपने को उभरती हुई विश्व शक्ति मानता हो? यह शायद भारत के इतिहास में पहली बार होगा कि बाहर से आने वाले किसी शरणार्थी के लिए हमने अपने दरवाजे बंद किए हुए हैं।

रोहिंग्या की सभी तस्वीरों से साफ है कि वे अति गरीब लोग हैं फिर भी हमारी सरकार उन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा मानती है यह कहते हुए कि उनके आतंकवादी संगठनों से सम्बंध हो सकते हैं। पहले यह बात बंग्लादेश से आए हुए लोगों के बारे में कही जाती थी। बंग्लादेशी भी बहुत गरीब हैं। वे काम की तलाश में हिन्दुस्तान आते हैं। उत्तर भारत में ज्यादातर बंग्लादेशी कूड़ा उठाने का काम करते हैं। उनमें से कुछ तहसील या न्यायालय परिसरों पर मसाले वाली चाय बेचते हुए भी मिल जाएंगे। हमारे यहां जो लोग पारम्परिक रूप से कूड़ा उठाते थे वे अब कोई बेहतर काम कर रहे हैं अथवा कूड़ा उठाने का ही बेहतर तनख्वाह, जैसे सरकारी नौकरियों में, पर काम कर रहे हैं। अतः बंग्लादेशी वह काम करते हैं जो हमारे यहां अब कोई करता नहीं। इसलिए वे किसी के रोजगार के लिए खतरा नहीं हैं।

कितने सारे भारतीय हैं जो रोजगार की तलाश में गैर कानूनी रूप से खाड़ी सहित पूरी दुनिया में पलायन करते हैं। पांच लाख भारतीय तो सिर्फ अमरीका में ही गैर कानूनी रूप से रह रहे हैं। भारत से लोग पीढ़ियों-पीढ़ियों से दुनिया के कोने कोने में काम की तलाश में जाते रहे हैं। पहले जब पासपोर्ट वीसा की आवश्यकता नहीं होती थी तब इसे गैर कानूनी नहीं माना जाता था। पर जैसे जैसे पासपोर्ट वीसा की व्यवस्थाएं लागू हुईं अचानक कई लोग गैर कानूनी हो गए। जिनके पास पासपोर्ट अथवा वीसा नहीं होता और वे कहीं जाना चाहते हैं तो सरकार के अन्य विभागों तरह यहां भी दलाल अच्छे-खासे पैसे के बदले अवैध रूप से काम करा देते हैं। गुजरात से यदि किसी को अमरीका जाना हो तो रू. 20 लाख में पासपोर्ट वीसा तैयार कराया जा सकता है।

दुनिया के कई देशों में भारतीय कई पीढ़ियों से बसे हुए हैं। उनमें से जो ज्यादा उद्यमी हैं वैसे कुछ लोग स्थानीय राजनीति का भी हिस्सा बन, चुनाव लड़ विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचे हैं। महेन्द्र चौधरी फिजी के प्रधान मंत्री बन गए थे, मारीशस में तो कई भारतीय मूल के राष्ट्रपति व प्रधान मंत्री बने हैं जिसमें वर्तमान प्रधान मंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ भी शामिल हैं, ट्रिनीडाड टोबैगो में बासुदेव पाण्डेय प्रधान मंत्री बने तो अमरीका में साऊथ कैरोलिना राज्य की गवर्नर निक्की हैली अब संयुक्त राष्ट्र में अमरीका की राजदूत हैं।

सवाल यह है कि भारत से गैर कानूनी रूप से काम की तलाश में खाड़ी जाने वाला बंगलादेश से काम की तलाश में भारत आने वाले से कैसे भिन्न है? सिर्फ इसलिए कि बंग्लादेशी या फिर रोहिंग्या मुस्लिम हैं हम उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानें क्या यह उचित है? भारत में रहने वाले कई प्रभावशाली लोग अपने देश की सुरक्षा के लिए इन गरीब लोगों से ज्यादा खतरनाक हैं।

देश के अंदर भी गरीब लोग रोजगार की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते हैं। गरीब राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडीशा या छत्तीसगढ़ से लोग अपेक्षाकृत सम्पन्न राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र या पंजाब में काम खोजने जाते हैं। मुम्बई में शिव सेना के लिए तो उ.प्र. या बिहार अथवा बंग्लादेश से आए किसी में शायद कोई अंतर ही नहीं क्योंकि वे स्थानीय लोगों के रोजगार के लिए इन सभी बाहरी लोगों को खतरा मानते हैं। अतः मामला सिर्फ राष्ट्रीयता या धर्म से जुड़ा नहीं है।

भारतीय जनता पार्टी के सांसद वरुण गांधी ने ठीक ही सुझाव दिया है कि हमें रोंहिग्या के प्रति सहानुभूति होनी चाहिए और एक-एक करके उनकी ठीक से जांच कर यदि हम पाते हैं कि उनसे हमें कोई खतरा नहीं हैं तो उन्हें शरणार्थी का दर्जा दे देना चाहिए। किंतु इस तर्कसंगत सुझाव के जवाब में उन्हीं की पार्टी के एक मंत्री महोदय ने उनकी राष्ट्रीय हितों के प्रति प्रतिबद्धता पर ही सवाल खड़ा कर दिया। हिन्दुत्व की राष्ट्रोन्मादी सोच के अंतर्गत यह सम्भव ही नहीं कि किसी विषय पर सार्थक बहस हो सके। भाजपा अपनी तय राय से इधर उधर नहीं जाना चाहती। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अहंकार उसे किसी वैकल्पिक दृष्टिकोण पर विचार हेतु गंुजाइश ही नहीं छोड़ता।

भारतीय सरकार को म्यांमार को समझाना चाहिए कि वह रोहिंग्या लोगों को वापस ले ले। किंतु जब तक म्यांमार इसके लिए तैयार नहीं होता रोहिंग्या लोगों को जबरदस्ती वापस उनके देश में ढकेल देना उनके साथ अन्याय होगा। बड़ा देश होने के कारण भारत से यह अपेक्षा की जाती है कि वह क्षेत्रीय मुद्दों पर नेतृत्व प्रदान करेगा। भारत को तो बंग्लादेश की मदद करनी चाहिए ताकि वह उसके यहां जो अचानक छह लाख रोहिंग्या लोग आ गए हैं उनकी ठीक तरीके से देख भाल कर सके। सिर्फ राहत सामग्री भेज कर भारत अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं समझ सकता। नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि लोग उन्हें एक अच्छे प्रधान मंत्री के रूप में याद रखें। किंतु उनमें वे गुण नहीं दिखाई पड़ते जो एक बड़े दिल व दूर दृष्टि रखने वाले नेता में होने चाहिए। इस बीच जब वे म्यांमार गए तो वहां की सबसे महत्वपूर्ण नेता आंग सान सू की, जिनकी रोहिंग्या के सवाल पर संवेदनशील भूमिका न लेने के कारण काफी थू-थू हुई है, के साथ बातचीत में उन्होंने रोहिंग्या का मुद्दा ही नहीं उठाया।

भारत को चाहिए कि भारत आ चुके बंग्लादेशियों को बिना नागरिकता के यहां काम करने का अधिकार दे तथा रोहिंग्या को शरणार्थी बनने की सुविधा दे। तभी यह माना जाएगा कि भारत एक संवेदनशील व विश्व का अग्रणी देश है।

( संदीप पाण्डेय is a well known activist and Magasaysay award recipient)

Similar News

Uncle Sam Has Grown Many Ears

When Gandhi Examined a Bill

Why the Opposition Lost

Why Modi Won