गुजरात चुनाव प्रचार का शोर जब थमने को था उससे ठीक पहले प्रशासन ने अहमदाबाद में सभी रैलियों पर रोक लगा दी थी . बीजेपी और कांग्रेस की तमाम। कोशिशों के बाद भी रैली की अनुमति नहीं मिली। इस बीच युवा पाटीदार नेता हार्दिक ने कुछ अलग और ग्रैंड करने की सोची और बिना प्रशासन की अनुमति और पूर्व सूचना के 15 किलोमीटर लंबी रैली अहमदाबाद की सड़कों पर निकाल दी। बिना अनुमति के हज़ारो की रैली ने गुजरात में खलबली मचा दी। हार्दिक की रैली अहमदाबाद की गली और सड़कों से होती हुई गुज़री।
जिसने अहमदाबाद की करीब सभी 16 विधानसभाओं को साधने का काम किया । इस रैली में हज़ारों की संख्या में नौजवानों और महिलाओं की भागेदारी देखते ही बनती थी।
यह हार्दिक पटेल का एक राजनैतिक सूझबूझ वाला क़दम था, बिना प्रशासन की अनुमति के हज़ारों की संख्या में जनता के साथ गुजरात की राजधानी की सड़कों पर रैली हार्दिक के लोकप्रियता का परिचय देती है, सड़क पर महिलाओं और नौजवानों में हार्दिक का स्वागत करने उससे हाथ मिलाने की होड़ लगी हुई थी। जनता के इस स्वागत और जूनून ने विरोधियों के होश उड़ा दिये। इस रैली को मीडिया की भी खूब कवरेज़ मिली क्योंकि रैली बिना प्रशासन की अनुमति के न सिर्फ हो रही थी बल्कि एक नये इतिहास के सृजन की गवाह अहमदाबाद की सड़कें बन रही थी।
हार्दिक , प्रशासन को खुली चुनौती देते नज़र आये 'की रोक सको तो रोक लो' । पर जिस तरह से रैली निकालने का साहस हार्दिक ने दिखाया उसी तरह रैली को रोकने का साहस प्रशासन नहीं दिखा पायी। हार्दिक अपना राजनैतिक सन्देश देने में न सिर्फ सफ़ल रहे बल्कि हार्दिक की रैली की गूँज पूरे देश में सुनायी पड़ी, कारण गुजरात की सड़कों पर हजारों- हज़ार की संख्या में पाटीदार, हार्दिक के नेतृत्व में बिना प्रशासन की अनुमति के, बिना बीजेपी के साथ के रैली कर रहे थे, यह अपने आप में अनोखा दृश्य था
हार्दिक ने कुछ ग्रैंड करने की ठान ली थी और किया भी।
हार्दिक का यह कदम लीगल था या इललीगल हम इस बहस में नहीं पड़ना चाहते। हार्दिक का तो कहना था कि उन्होंने यह रैली नहीं निकली, वो तो अहमदाबाद में अपने घर जा रहे थे, हार्दिक चलते गयी और काफिला बनता गया। पर यह काफिला गुजरात चुनावों में एक बड़ा राजनैतिक सन्देश दे गया।
हार्दिक की इस रैली की गूँज का शोर इतना अधिक था कि मोदी जी को 'सी प्लेन' के शोर के अलावा कोई रास्ता समझ में नहीं आया इस गूँज को दबाने का। मोदी जी ने भी कुछ ग्रैंड करने का इरादा बनाया, उनको जवाब तो देना ही था क्योंकि सवाल गुजरात का था। मोदी जी चाहते तो इस रैली के जवाब, पब्लिक मीटिंग कर दे सकते थे, लेकिन वह हार्दिक की 15 किलोमीटर लंबी रैली का जवाब नहीं हो सकती थी और जिस तरह से प्रधानमंत्री जी की रैलियों प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और वह हार्दिक की तरह बिना अनुमति की रैली निकालकर कुछ अलग नहीं कर सकते थे, तो इस सबके जवाब मोदी जी ने भी कुछ 'ग्रैंड' करने की ठानी।
और चुनाव प्रचार बंद होने के ठीक पहले एक एक बड़ा हवाई तोड़ निकलते हुए 'सी प्लेन' की ख़ोज कर डाली। और सड़क पर न सही पर पानी के ऊपर करतब दिखाकर जनता को आकर्षित करने का प्रयास किया जाने लगा। मजे की बात यह है कि इस करतब के लिये रातों-रात विदेश मंत्रालय का सहारा लिया गया और कनाडा से पायलेट को बुलाया गया, शायद इस तरह के पारंगत पायलेट हमारे यहाँ नहीं थे, या यह भी हो सकता इस तरह के करतबों के लिये मोदी जी हिन्दुस्तान के पायलटों पर भरोसा नहीं कर सके। या फिर शायद मोदी जी अपने गुजरात चुनाव प्रचार में विदेशी पुट(विदेशी तड़का) देना चाहते थे?
और इसके लिये लिए साबरमती रिवर फ्रंट पर सारे इंतेज़ाम किये गये, जनता जुटायी गयी, मीडिया का भी मजमा लगा और इस सारे ड्रामे को 'विकास' का नाम देने की कोशिशें की जाने लगी।
इस सारे स्टंट का असली मकसद था मोदी जी द्वारा हार्दिक की ग्रैंड रैली का जवाब कुछ अलग ग्रैंड करके देना, और विकास के मुद्द्दे को भटकाना, जिसके लिये न सिर्फ प्रधानमंत्री कार्यालय की शक्तियों का उपयोग करते हुए विदेश मंत्रालय से भी मदद ली गयी ।
मेरी समझ से हार्दिक पटेल और प्रधानमंत्री जी के ग्रैंड प्रयासों में कुछ मूलभूत अंतर थे...
जहाँ हार्दिक ने जनता के बीच अपनी रैली कर जनता से सीधा संवाद स्थापित किया, महिलायें, बुजुर्ग हार्दिक को अपना आशीर्वाद देने के लिये परेशान नज़र आये वही अपने को गुजरात का बेटा कहने वाले ( बनारस के साथ- साथ) मोदी जी को जनता से संवाद स्थापित करने की लिये मीडिया का सहारा लेना पड़ा। जहाँ हार्दिक ने अपने समर्थकों के साथ रैली की वही मोदी जी को विकास के सवाल पर, हार्दिक की रैली के जवाब में
प्रधानमंत्री की शक्तियों का प्रयोग अपने करतबों को दिखाने के लिये।
नोटबंदी और जीएसटी से त्रस्त गुजरात की जनता को प्रधानमंत्री मोदी जी 'सी प्लेन' से करतब दिखाकर जनता को उसकी फ़कीरी और अपने आलीशान ठाठ का एहसास करते नज़र आये।
कोई कुछ भी कहे पर असल लड़ाई विकास के सवाल के पर थी ही नहीं, सी प्लेन से मोदी जी ने कांग्रेस को विकास के सवाल पर नहीं बल्कि हार्दिक पटेल के ग्रैंड रोड शो का जवाब देने की कोशिश की और जनता को चुनावी मुद्दों से भटकाने का प्रयास किया।
और मुद्दा विकास से हटकर हार्दिक पटेल बनाम प्रधानमंत्री मोदी के कंपटीशन का हो गया।
गुजरात चुनाव के आने वाले परिणामों में हार- जीत किसी की भी पर गुजरात चुनाव याद किया जायेगा
सड़क रैली बनाम सी प्लेन की उड़ान के लिये।
कुछ ग्रैंड करने की प्रधानमंत्री जी की होड़ के लिये ।
और ग्रैंड करने के चाहत में प्रधानमंत्री मोदी जी के बड़े रिस्क के लिये, जिसमें वह किसी फिल्म के हीरो की तरह स्टंट करते , सी प्लेन से बाहर लटकते नज़र आये और इस सब के बीच शायद सीट बेल्ट बाँधने की पायलेट की सलाह पर भी मोदी जी ध्यान देना भूल गये और प्रधानमंत्री की गरिमा और सुरक्षा दोनों को खतरे में डाल दिया।
गुजरात चुनाव अंतिम समय में राहुल गांधी बनाम मोदी से हटकर हार्दिक पटेल बनाम मोदी और और रोड शो बनाम सी प्लेन शो हो गये हैं।
(ऋचा सिंह .पूर्व अध्यक्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय)