भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक विधान सभा चुनाव में प्रचार -अभियान से फुरसत मिलते ही दो -दिवसीय यात्रा पर 11 मई को नेपाल पहुँच गए। वह कर्नाटक चुनाव के लिए और ज्यादाऔपचारिक प्रचार नहीं कर सकते थे। 12 मई को निर्धारित मतदान के मद्देनजर औपचारिक प्रचार प्रतिबंधित है। लेकिन मोदी जी के चुनाव प्रचार के तौर -तरीके नायाब हैं। वह औपचारिक प्रचार पर बंदिश के बंधन से मुक्त होकर विदेशी भूमि से भी प्रचार कर सकते है और उन्होंने नेपाल जाकर अन्य बातों के अलावा यही किया। वह रामायण में सीता की जन्मस्थली वर्णित जनकपुर ( नेपाल ) में पूजा कर अप्रतयक्ष रूप से अयोध्या में राम मंदिर का चुनावी मुद्दा सामने ले आये। उन्होंने जनकपुर में मंदिर निर्माण एवं विकास के लिए भारत सरकार की ओर से 100 करोड़ रूपये की ऋण सहायता प्रदान करने की घोषणा वहाँ एक जनसभा में की। उन्होंने जनकपुर से अयोध्या तक की बस सेवा का श्रीगणेश भी किया। जनकपुर , अयोध्या से दर्जन भर स्थानों को स्थल परिवहन से जोड़ने की भारत द्वारा तैयार की जाने वाली ' रामायण सर्किट ' में शामिल है। इस सर्किट में नागपुर कैसे शामिल है , इसका आधिकारिक खुलासा नहीं किया गया है . बहरहाल उन्होंने जनकपुर में अपनी सभा के टीवी पर लाइव प्रसारण से कर्नाटक में चुनाव प्रचार पर लगी रोक को एक तरह से धता बता दी।
मोदी जी जनकपुर से नेपाल की राजधानी काठमांडू भी पहुँच गए जहां उनके नागरिक अभिनंदन की योजना है। वह 15 मई को कर्नाटक चुनाव के परिणाम निकलने के दिन स्वदेश में उपस्थित रहने के पहले रात में नेपाली नेताओं के साथ बातचीत करने के बाद पशुपतिनाथ मंदिर में पूजन -अर्चन और संभवतः मुक्तिनाथ की भी तीर्थयात्रा संपन्न कर लेंगे। उन्होंने नेपाल में स्वयं को प्रधान तीर्थयात्री ' से अलंकृत करते हुए कहा कि अयोध्या और जनकपुर के बीच शताब्दियों से अटूट सम्बन्ध है , नेपाल बिन भारत का धार्मिक विश्वास और इतिहास अधूरा है। उनके शब्द थे , " नेपाल बिना हमारा राम अपूर्ण है।
नेपाल के प्रधानमंत्री एवं नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी - एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी ( नेकपा -एमाले ) के नेता के.पी. शर्मा ओली , मोदी जी के साथ थे. मोदी के साथ अपनी ‘ केमिस्ट्री’ मिलने की बात कहने वाले नेपाल की कंम्युनिस्ट पार्टी ( माओइस्ट सेंटर ) के नेता पुष्प कमल दहाल ' प्रचंड ' भी साथ ही रहे। के. पी. ओली कहते रहे हैं कि उनकी सरकार भारत और चीन दोनों से सम्बन्ध बेहतर बनाने के लिए कार्य करेगी. श्री ओली जिस नेकपा एमाले के नेता हैं उसके साथ मिलकर लगभग सभी कम्युनिस्ट पार्टियों ने पिछले संसदीय चुनाव में दो-तिहाई बहुमत से जीत कर नई सांझा सरकार बनाई है। नेपाल में क्रान्ति नहीं हुई है. बेशक क्रान्ति की पक्षधर कम्युनिस्ट पार्टियां , चुनाव जीत सत्ता पर फिर काबिज हैं. नए संविधान के तहत नेपाल ' हिन्दू -राष्ट्र ' नहीं रहा. उसे धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित किया जा चुका है|
नेकपा एमाले ) के साथ मिल कर लगभग सभी कम्युनिस्ट पार्टियों ने पिछले संसदीय चुनाव में दो-तिहाई बहुमत से जीत कर नई सांझा सरकार बनाई है। गौरतलब है कि नेपाल में क्रान्ति नहीं हुई है. बेशक क्रान्ति की पक्षधर कम्युनिस्ट पार्टियां , लोकतांत्रिक चुनाव जीत सत्ता पर फिर काबिज हैं. नए संविधान के तहत नेपाल ' हिन्दू राष्ट्र ' नहीं रहा. उसे धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित किया जा चुका है. नेपाल के पिछले चुनाव परिणाम के दूरगामी आर्थिक , सामाजिक , राजनितिक प्रभाव ही नहीं उनके सामरिक और वैश्विक अर्थ पूरी तरह खुलने में समय लगेगा। इस अर्थ को बेहतर रूप से समझने में नेपाल के लोगों के साथ ही उसके पड़ोसी देशों , भारत और चीन की सरकारों की भी उत्सुकता स्वाभाविक है|
समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक एवं नेपाल मामलों के विशेषज्ञ आनंद स्वरूप वर्मा ने मीडिया विजिल के लिए मोदी की “धार्मिक-सांस्कृतिक” नेपाल यात्रा के राजनीतिक निहितार्थ शीर्षक आलेख में रेखांकित किया है कि प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद उसी बरस मोदी जी ने धूमधाम से 3 अगस्त 2014 को नेपाल की पहली यात्रा की थी। सबसे पहले भूटान फिर नेपाल की यात्रा के बाद मोदी ने जी दुनिया भर की सैर की जिनका विस्तृत प्रबंधन उनकी मंडली करती रही है. मंडली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रवक्ता एवं भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा ' संगठन महासचिव ' राम माधव शामिल हैं. मोदी जी की दूसरी नेपाल यात्रा नवंबर 2014 में हुई . तब वह ' सार्क ' के सदस्य देशों के सम्मेलन में भाग लेने काठमांडो गए थे . उस यात्रा से पहले मोदी ने भाषण में कहा था कि नेपाल में बहुत सारे अधूरे काम पूरे करने हैं ‘ जो पिछले बीस-तीस वर्षों से रुके पड़े हैं।’ मोदी जी ने निश्चय किया था कि वह सार्क सम्मेलन से निपट कर जनकपुर, लुंबिनी तथा मुक्तिनाथ भी जाएंगे। प्रधानमंत्री कार्यालय ने तय किया था कि मोदी जी सड़क मार्ग से जनकपुर में प्रवेश करेंगे और जानकी धाम मंदिर में " राम-सीता विवाह " के उपलक्ष्य के पूजन में उपस्थित होंगे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नेपाली शाखा ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ के अलावा ‘ सीमा जागरण मंच ’ और ‘ हिंदू जागरण मंच ’ जैसे संगठन मोदी के स्वागत की तैयारी में जुट गए थे। लेकिन नेपाल सरकार ने इसका विरोध देखते हुए मोदी जी के सड़क मार्ग से जनकपुर जाने पर यह कह रोक लगा दी कि इसकी प्रयाप्त सुरक्षा तैयारी नहीं है। जनकपुर में मोदी जी की सार्वजनिक सभा भी रद्द कर दी गई . क्योंकि माओवादी पार्टी और नेकपा(एमाले) का मानना था कि यह उचित नहीं है। खबर थी कि मोदी जी जनकपुर की सभा में अपने भाषण का इस्तेमाल बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए करना चाहते थे . तब नेपाली कांग्रेस के सुशील कोइराला प्रधानमंत्री थे। । मोदी के लिए यह बहुत तल्ख अनुभव रहा। वह हवाई मार्ग से काठमांडो गए और सार्क सम्मेलन में भाग लेने के बाद वापस दिल्ली लौट आए। भारत-नेपाल संबंधों की जटिलता का अत्यंत महत्वपूर्ण पड़ाव तब सामने आया जब नेपाल ने आंशिक तौर पर धर्मनिरपेक्ष लेकिन पूर्ण रूप से ‘हिंदू राष्ट्र’ शब्दावली को बाहर रखते हुए अपना संविधान जारी किया. मधेशी लोगों की मांग के समर्थन में उग्र हुए आंदोलन की आड़ में मोदी सरकार ने नेपाल की अघोषित आर्थिक नाकेबंदी कर दी . तत्कालीन प्रधानमंत्री के.पी. ओली ने इस कठिन समय में नेपाली जनता के अंदर एक ऐसा राष्ट्रवाद पैदा किया जिसकी लहार पर सवार होकर वह आज दो-तिहाई बहुमत से प्रधानमंत्री पद पर आसीन हैं। तब नेपाली कांग्रेस ने पुष्प कमल दहाल ' प्रचंड ' के नेतृत्व वाली नेपाल की कंम्युनिस्ट पार्टी ( माओइस्ट सेंटर ) से हाथ मिला कर ओली सरकार गिरा दी थी . श्री ओली की पिछली सरकार , नेपाली कांग्रेस और माओवादी कंम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन वापसी के परिणामस्वरूप जुलाई 2016 में गिर गई थी. इसके बाद नेपाली कांग्रेस के समर्थन से माओवादी कम्यूनिस्ट पार्टी नेता पुष्प कमल दहाल ' प्रचंड ' ने सरकार बनाई। प्रचंड पहले भी राजसत्ता की कमान संभाल चुके थे।
मोदी जी ने एक महीने पहले ही के.पी. ओली के भारत आगमन के दौरान प्रधानमंत्री के रूप में नेपाल की अपनी इस तीसरी यात्रा के तहत ही सबसे पहले जनकपुर पहुँचने का कार्यक्रम और तय कर लिया था। गौरतलब है कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के माहभर पहले अप्रैल 2014 में नेपाल के विराटनगर शहर में हिंदू कार्यकर्ताओं की सभा में विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष ( अब दिवंगत ) अशोक सिंघल ने खुले आम कहा था कि अगर मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो नेपाल फिर से हिंदू राष्ट्र बना दिया जाएगा। जब नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला की अंत्येष्टि में भाग लेने भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष और वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह काठमांडो गए तो उन्होंने भी कहा था कि ‘ हमें इस बात पर हमेशा गर्व होता रहा है कि नेपाल दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र है। अगर नेपाल फिर से हिंदू राष्ट्र बन सके तो मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी।’ सत्ता में आने के बाद राजनाथ सिंह कहने लगे कि उनके चाहने भर से नहीं बल्कि नेपाली जनता के चाहने से ही नेपाल फिर हिंदू राष्ट्र हो सकता है। उस समय तक नेपाल का नया संविधान रचने की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी । विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से लेकर अन्य नेताओं ने नेपाल के नए संविधान में ‘हिंदू राष्ट्र’ शब्दावली डालने के प्रयास किये थे। मोदी जी ने विशेष दूत के रूप में तत्कालीन विदेश सचिव जयशंकर को यह काम सौंपा कि वह नेपाल जाएं और नए संविधान की घोषणा करने से वहां के नेताओं को रोकें। लेकिन ये सारे प्रयास विफल रहे। इस वजह से मोदी सरकार बहुत नाराज़ हो गई। उसने अघोषित रूप से नेपाल की आर्थिक नाकाबंदी कर दी। इसकी वजह से नेपाल में पेट्रोलियम पदार्थ की आपूर्ति लगभग ठप हो गई। मोदी सरकार ने इस आपूर्ति में बाधा का कारण भारत -सीमा से लगे तराई क्षेत्रों में बसे भारतीय मूल के मधेशी कहे जाने वाले नागरिकों का अपने राजनीतिक प्रतिनिधित्व में बढ़ौत्तरी के लिए चलाया उग्र आंदोलन बताया था. नेपाली आम जनता इस नाकाबंदी से आक्रोशित रही। उसने इसके लिए मोदी सरकार और भारत समर्थक मानी जाने वाली , नेपाली कांग्रेस को भी जिम्मेववार माना। नाकाबंदी से निपटने तत्कालीन प्रधानमन्त्री ( मौजूदा भी ) , के पी ओली ने जब चीन से मदद हासिल करनी शुरू कर दी तो भारत ने नेपाल को चीन के पाले में जाने से रोकने के लिए नाकाबंदी खत्म कर दी. लेकिन नेपाली लोगों के बीच नाकाबंदी की पीड़ा की याद बनी रही जिसका खामियाजा पिछले चुनाव में नेपाली कांग्रेस को उठाना पड़ा। नेपाल के लोग नाकाबंदी के दर्द को भूल नहीं सके हैं और जनता के एक बहुत बड़े हिस्से से यह मांग उठ रही है कि अपनी इस यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी नाकाबंदी के लिए नेपाल की जनता से माफी मांगें। नेपाल के मौजूदा गृहमंत्री रामबहादुर थापा ने कहा तो यही कि मोदी की इस बार की यात्रा महज धार्मिक और सांस्कृतिक है|
कम्युनिस्टों को पिछले चुनाव में 275 सीटों की प्रतिनिधि सभा (संसद) में दो-तिहाई बहुमत मिला। चुनाव शेर बहादुर देउबा के प्रधानमंत्रित्व में हुआ था जो चार बार यह पद संभाल चुके है और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. पूर्ववर्ती राजशाही और हिन्दू- राष्ट्र समर्थक ' राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ' को सिर्फ एक सीट मिलीं। पहली बार साथ मिल कर चुनाव लड़ने वाली नेकपा एमाले ने 103 सीटों पर प्रत्याशी खड़े कर 80 जीती। उसकी सहयोगी , नेपाल की कंम्युनिस्ट पार्टी ( माओइस्ट सेंटर ) ने 60 सीटों पर चुनाव लड़ 36 जीत ली। नेपाल के सात प्रांतीय सभाओं के भी साथ हुए चुनाव में , छह में कंम्युनिस्ट पार्टियों का ही परचम लहराया। यह स्पष्ट करना जरुरी है कि कम्म्युनिस्टों के लोकतांत्रिक रूप से चुनाव जीत कर सत्ता में आने का न तो नेपाल और ना ही शेष विश्व में यह पहला अवसर है. विश्व में में लोकतांत्रिक चुनाव जीत कर पहली कम्म्युनिस्ट सरकार 1945 में इटली के निकटवर्ती नगर-राज्य , सान मारिओ गणराज्य में बनी थी। फिर भारत के केरल राज्य में 1957 में बनी जिसके मुख्यमंत्री ई.एम.एस. नम्बूदरीपाद थे। वह लम्बे अर्से तक भारत की कम्मुनिस्ट पार्टी और उससे विभाजित होकर बनाई गई मार्क्सवादी कम्मुनिस्ट पार्टी के नेता रहे और 1998 में दिवंगत हो चुके हैं। गौरतलब है कि भारत की आज़ादी के बाद बनी वह पहली गैर-कांग्रेस और " कम्यूनिस्ट " सरकार प्रांतीय सत्ता की थी और ज्यादा टिक नहीं सकी. नम्बूदरीपाद सरकार को भारत की केंद्रीय सत्ता की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने दो ही बरस में बर्खास्त कर केरल में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। ये दीगर बात है कि उन्होंने केरल में फिर 1967 में निर्वाचित सरकार की कमान संभाली। माओवादी पार्टी नेपाल में पहली बार 2006 में और फिर 2007 में भी सांझा साकार में शामिल हुई। उसने कुछेक बार खुद भी सत्ता की कमान संभाली है. एमाले भी कई बार सत्ता का स्वाद चख चुकी है. लेकिन यह पहली बार हुआ कि वहां कम्म्युनिस्ट पूरे दम -ख़म से सत्ता में आये हैं और वह प्रांतीय नहीं बल्कि केंद्रीय सत्ता है. नेपाल की सभी प्रमुख कम्मुनिस्ट पार्टियों ने 2017 का संसदीय और प्रांतीय चुनाव भी साथ मिलकर चुनाव लड़ा। यह भी पहली बार हुआ कि कम्म्युनिस्ट करीब दो -तिहाई बहुमत से चुनाव जीते । इसकी बदौलत वे 2005 में बने मौजूदा संविधान को बदल भी सकते हैं जिसके तहत यह पहला चुनाव था। इसके पहले के चुनाव अंतरिम संविधान के तहत हुए थे जो कम्म्युनिस्टों और गैर -कम्युनिस्टों ने राजशाही खत्म कर लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था कायम करने साथ मिल कर बनाया था. नया संविधान भी दोनों के मिलकर बनाने से ही कायम हो सका। नया संविधान बनाने की ड्राफ्टिंग कमेटी के प्रमुख वहां 2011 से 2013 तक प्रधानमंत्री रह चुके बाबूराम भटटराई थे जो मूलतः कम्युनिस्ट हैं। उन्होंने पीएचडी की शिक्षा भारत में ही कम्युनिस्टों का गढ़ माने जाने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय ( नई दिल्ली ) से प्राप्त की है. वह भारत में मोदी सरकार के गठन तक श्री प्रचंड के नेतृत्व वाली माओवादी कम्मुनिस्ट पार्टी के साथ थे। पर बाद में उन्होंने अपनी अलग , नया शक्ति पार्टी , बना ली। उसकी ओर से वह इस चुनाव में जीते भी हैं. पिछले चुनाव से फर्क यह आया है कि कम्युनिस्टों को पांच बरस सत्ता में बने रहने के लिए गैर -कम्मुनिस्ट पार्टियों के सहारे की जरुरत नहीं रह गई और अब वे संविधान में सारे संशोधन कर सकते है जो वह पहले चाहते हुए भी पर्याप्त बहुमत के अभाव में नहीं कर सके थे. लेकिन संविधान बदलने या फिर उसमें संशोधन कर लेने से ही कम्म्युनिस्ट नेपाल में सर्वहारा क्रांति लाने में सफल हो जाएंगे यह नहीं कहा जा सकता है. प्रधानमन्त्री रह चुके नेकपा एमाले के वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल आगे क्या करेंगे वही जानें . इसकी गारंटी नहीं है कि दो बार , 2008 से 2009 और फिर 2016 से 2017 तक प्रधानमन्त्री रहे श्री प्रचंड और श्री ओली कब क्या कर बैठें |
बहरहाल मोदी जी की इस नेपाल यात्रा का मूल मकसद क्या था और उसका असर कर्नाटक और निकट भविष्य के आम चुनाव पर कितना पड़ता है यह आगे की बात है। इतना जरूर रेखांकित किया जा सकता है जिस दिन , 15 मई को कर्नाटक चुनाव के परिणाम निकलेंगे मोदी जी के प्रधानमन्त्री बने रहने के चार साल से एक दिन ज्यादा हो जाएंगे। मतलब अगले आम चुनाव कराने में सांविधिक तौर पर 364 दिन ही रह जाएंगे।
(लेखक स्वतंत्र वरिष्ठ पत्रकार और द -सिटीजन -हिंदी के स्तम्भकार है।)