आरक्षण रोस्टर पर उच्च शिक्षण संस्थानों में बढ़ता विवाद

विश्वविद्यालयों का सामाजिक ढांचा जल्दबाजी में हैं

Update: 2018-06-27 11:37 GMT

देश के कुछ केन्द्रीय विश्वविद्यालयों ने अपनी सुविधानुसार आरक्षण रोस्टर बनाकर पद विज्ञापित कर दिए हैं. विज्ञापन के उपरांत एक नया विवाद सामने आ गया है कि जब संविधान के अनुसार सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को एक आरक्षण नीति का पालन करना है तब एक ही समय में विभिन्न विश्वविद्यालय विभिन्न आरक्षण रोस्टर का पालन कैसे कर सकते हैं? यह सवालिया निशान आरक्षण नीति के साथ साथ सरकार की साख पर भी लग गया है.

देश में आरक्षण को लेकर विवाद प्रारंभ से ही रहा है. लेकिन पिछले कुछ महीने में उच्च शिक्षण संस्थानों में शैक्षणिक पदों में नियुक्ति आरक्षण का मामला लगातार गंभीर होता जा रहा है. हालिया विवाद की शुरुआत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा जारी 5 मार्च 2018 के पत्र के साथ शुरू हो जाता है. पत्र में इलाहाबाद उच्च न्यायलय के निर्णय का हवाला देते हुए विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति हेतु आरक्षण को विभागीय या विषयवार लगाने का निर्देश दिया गया था. निर्देश प्राप्त होते ही सभी विश्वविद्यालय नए आरक्षण रोस्टर को बनाने लगती है, रोस्टर बनाने के क्रम में यह तथ्य उजागर होता है कि अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के लिए पदों का सृजन हो पाना लगभग असंभव सा है. नए रोस्टर के अनुसार विभाग अथवा विषय में क्रमशः 14 वीं नियुक्ति

अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार हेतु आरक्षित किये जाने का निर्देश है, उच्च शिक्षा से जुड़े लोग भली भांति इस तथ्य से परिचित हैं कि विभाग या विषय में 14 वीं नियुक्ति का हो पाना लगभग असंभव सा होता होता है और ऐसे में अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थी कभी भी आरक्षण का लाभ नहीं ले पाएंगे और अनुसूचित जाति के अभ्यर्थी के लिए किसी एक या दो विभाग में बहुत ज्यादा तो एक पद सृजित हो सकता है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का तत्काल प्रभाव से लागू करने का निर्देश था. अतः विश्वविद्यालयों ने अविलम्ब आरक्षण रोस्टर बनाना शुरू कर दिया.

नए रोस्टर के मुताबिक विश्वविद्यालयों के विज्ञापन

देश के विभिन्न शैक्षणिक संगठन नए आरक्षण रोस्टर का विरोध करने लगे. विरोध प्रदर्शन के मध्य जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक ने 8 अप्रैल 2018 को 52 शैक्षणिक पदों हेतु विज्ञापन निकाला. नए रोस्टर नीति के कारण इन 52 पदों में से एक भी पद अनुसूचित जाति व जनजाति हेतु आरक्षित नहीं था. मामला गहराने लगा, अब जनजातीय विश्वविद्यालय में भी अनुसूचित जाति व जनजाति को आरक्षण नहीं मिलेगा तब कहाँ मिलेगा? लेकिन विश्वविद्यालय ने नियमों का हवाला दिया. इसके 3 दिन बाद 11 अप्रैल को तमिलनाडु केन्द्रीय विश्वविद्यालय द्वारा कुल 65 शैक्षिक पद विज्ञापित किये गए इन पदों में से भी एक भी पद अनुसूचित जाति व् जनजाति हेतु आरक्षित नहीं था. इन दोनों के साथ कई अन्य संस्थानों ने भी पद विज्ञापित कर दिए. नए आरक्षण रोस्टर के तहत जिनते भी पद विज्ञापित हो रहे थे उसके अंतर्गत किसी भी संस्थान में अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए कोई भी पद आरक्षित नहीं था. नए आरक्षण रोस्टर का राष्ट्रव्यापी विरोध शुरू हो गया. विज्ञापित हो रहे पदों के आधार पर सभी इस मत पर पहुँच चुके थे कि नए आरक्षण रोस्टर के अनुसार अब अनुसूचित जाति व जनजाति के उम्मीदवारों को उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण मिलना लगभग असंभव सा है. अतः आन्दोलन तेजी से बढ़ने लगा.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय का विरोध

आन्दोलन को गंभीरता से लेते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी अंतरिम कमिटी का गठन किया. कमिटी की रिपोर्ट में भी यही तथ्य सामने आया कि नए रोस्टर से अनुसूचित जाति व जनजाति के आरक्षण को वृहत पैमाने पर नुकसान होगा. मंत्रालय ने नए आरक्षण रोस्टर के विरोध में उसे रद्द करवाने हेतु सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल किया. इसकी सूचना विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा सभी विश्वविद्यालयों को 20 अप्रैल 2018 को दे दी गयी. सभी आन्दोलनकारी ने अपना आन्दोलन खत्म कर दिया क्योंकि सभी का यह मानना था कि जब स्वयं मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने नए आरक्षण रोस्टर का विरोध किया है और इस आशय से संबंधित पत्र भी सभी विश्वविद्यालयों को प्रेषित कर दिया है तब विश्वविद्यालय पुराने आरक्षण रोस्टर से ही अब पद विज्ञापित करेगी. इसी दौरान जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक द्वारा नए आरक्षण रोस्टर से विज्ञापित पदों हेतु विज्ञापन को वापस भी ले लिया. अतः अब सभी यह मानने लगे कि अब पुराना आरक्षण रोस्टर लागू होगा और नया रद्द हो गया है.

विवाद का नया दौर

लेकिन विवाद का अगला चरण इसी के बाद शुरू होता है. एक महीने तक तो मामला शांत रहा, जुलाई में प्रत्येक विश्वविद्यालय का सत्र शुरू होता है और लगभग लगभग हर विश्वविद्यालय द्वारा स्थायी या अधिकांशतः अस्थायी नियुक्ति हेतु विज्ञापन जून- जुलाई माह में निकाला जाता है. अब देश के विभिन्न विश्वविद्यालय द्वारा किस आरक्षण निर्देश का पालन किया जाये को लेकर भ्रम को बनाया जाने लगा. कोई विश्वविद्यालय नया तो कोई पुराने आरक्षण रोस्टर से पद विज्ञापित करने लगा. कुछ विश्वविद्यालयों ने तो दोनों आरक्षण रोस्टर का हवाला देते हुए पद विज्ञापित कर दिया. विश्वविद्यालयों द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से पत्र व्यवहार कर स्थिति को स्पष्ट करने का आग्रह किया जा सकता था और जबतक स्थिति स्पष्ट न हो तबतक नए पद विज्ञापित न कर पुरानी स्थिति को बहल किया जा सकता था. लेकिन विश्वविद्यालयों ने नए और पुराने दोनों आरक्षण रोस्टर को अपनी समझ के अनुसार लागू कर एक अराजकता की स्थिति बना दी है. हम सभी जानते हैं कि देश के कुछ विशेष केन्द्रीय संस्थानों को छोड़कर समस्त सभी केन्द्रीय संस्थानों में केंद्र सरकार की एक सामान आरक्षण नीति का ही पालन होता है लेकिन वर्तमान समय में इस नियम से खिलवाड़ कर आरक्षण पर अराजगता को बहाल कर दिया गया.

जिन विश्वविद्यालयों में पुराने रोस्टर से नियुक्ति निकली गयी वहां अनुसूचित जाति व जनजाति हेतु पद विज्ञापित किये गए जैसे गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर. जबकि जहाँ नए रोस्टर से पद विज्ञापित किये गए वहां नाममात्र का अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के लोगों को आरक्षण दिया गया जैसे दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिहार. तमिलनाडु केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने पद विज्ञापित कर केवल सभी विभागों में रिक्त पदों की संख्या को बताया तथा यह लिख दिया कि अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के लोगों को आवेदन हेतु प्रोत्साहित किया जाता है लेकिन आरक्षण के सवाल पर केवल यह लिखा कि आरक्षण भारत सरकार के नियमों के अनुसार दिया जायेगा. जबकि नियम यह भी है कि पदों को विज्ञापित करते समय ही आरक्षित पदों की कोटिवार संख्या भी बताना है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने अपने वेबसाइट पर पुराना और नया दोनों आरक्षण रोस्टर बनाकर अपलोड कर दिया है. राज्य सरकार के अंतर्गत आने वाले अधिकांश विश्वविद्यालय द्वारा पुराने आरक्षण रोस्टर से पद विज्ञापित किये जा रहे हैं.

यह शायद पहली बार है जब आरक्षण को लेकर इतना असमंजस है. विभिन्न विश्वविद्यालय को यह स्पष्ट ही नहीं है कि उन्हें किस आरक्षण नियम का पालन करना है. इस प्रकार का असमंजस हमारे संविधान की प्रतिष्ठा पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है. आरक्षण का होना या न होना इस विषय पर विभिन्न मत हो सकते हैं लेकिन आरक्षण नियमों को लेकर इस प्रकार का अराजक असमंजसता के होने से सभी एक सामान दुस्प्रभावित होंगे. आरक्षण के मुद्दे पर अगर सभी विश्वविद्यालय अपने अपने मुताबित नियमों को व्याख्यित करने लगेंगे तो यह मामला विश्वविद्यलय से बाहर निकलकर सम्पूर्ण देश को आंदोलित कर देगा तथा सामाजिक समरसता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा.

विश्वविद्यालय क्यों कर रहें जल्दबाजी

कई बार ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय जानबूझ कर ऐसी स्थिति उत्पन्न कर रहा है. 2 जुलाई 2018 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एसएलपी पर सुनवाई होनी है ऐसे में विश्वविद्यालयों को जल्दबाजी कर पद विज्ञापित करने की क्या आवश्यकता है? जब सरकार खुद नए आरक्षण रोस्टर के विरोध में और पुराने आरक्षण रोस्टर के पक्ष में है तथा सरकार ने इसकी सूचना भी सभी विश्वविद्यालयों को दे दी है तब क्या जिन विश्वविद्यालयों द्वारा नए आरक्षण रोस्टर से पद विज्ञापित किये जा रहे हैं उन्हें सरकार के फैसले का विरोधी समझा जाये?

नए और पुराने आरक्षण रोस्टर के अंतर्गत कई सवाल है जिनका जवाब सरकार और न्यायपालिका के पास ही है. अतः विश्वविद्यालयों को इस स्थिति में आरक्षण नियमों को खुद व्याख्यायित न कर सरकार के निर्देश का पालन करना चाहिए. अगर नियमों को समझने में दिक्कत हो रही हो तो सरकार से पत्र व्यवहार कर मामले को स्पष्ट करना चाहिए. विश्वविद्यालय अगर खुद से नियमों को व्याख्यायित कर आरक्षण नियमों में असमंजस को जन्म देंगे तो विश्वविद्यालयों की इस गलती का खामियाजा सरकार और समाज दोनों को भुगतना होगा.

Similar News

Uncle Sam Has Grown Many Ears

When Gandhi Examined a Bill

Why the Opposition Lost

Why Modi Won