बिहार विधान सभा का अगला चुनाव 2021 में होना है। लेकिन मुख्यमंत्री नितीश कुमार , लोकसभा और सभी राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने के " एक राष्ट्र -एक चुनाव " के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव का समर्थन कर चुके हैं। यह निश्चित नहीं है है कि ऐसे में बिहार विधान सभा के नए चुनाव , लोकसभा के अगले चुनाव के साथ ही कराये जाएंगे। बहरहाल , बिहार में भारतीय जनता पार्टी और उसका गठबंधन , नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस , यानि एनडीए अगले आम चुनाव की तैयारी में विपक्षी दलों के महागठबंधन से ज्यादा चुस्त नजर आती है।
भाजपा की चुनावी रणनीति ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की है। इसलिए वह सहयोगी दलों के साथ नरम पड़ गई है। वह चाहती है कि सीटों के बंटवारे में ऐसा कुछ न हो कि उसे राज्य में सरकार से फिर बाहर जाना पड़े। उसकी यह स्पष्ट चुनावी रणनीति है कि मौजूदा मुख्यमंत्री नितीश कुमार का जनता दल -यूनाइटेड , विपक्षी महागठबंधन की तरफ न छिटके और एनडीए का ही हिस्सा बन चुनाव लड़े। भाजपा ने मौजूदा गठबंधन में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए राज्य में एनडीए का ' चेहरा ' , नितीश कुमार को ही घोषित कर दिया है। महागठबंधन की तरफ से ऐसा कुछ भी नही किया गया है।
प्रस्तावित महागठबंधन में शामिल समझी जाने वाली कांग्रेस के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल , पूर्व मुख्य मंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी और अन्य सभी दल ज्यादा से ज्यादा सीटों पर आम चुनाव लड़ना चाहते हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी समेत सभी संसदीय कम्युनिस्ट पार्टियों को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस महागठबंधन के साथ माना जाता है। राष्ट्रीय जनता दल की बागडोर लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव संभाले हुए हैं। वह राज्य के उस पूर्ववर्ती महागठबंधन सरकार में उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं जिसके मुख्यमंत्री नितीश कुमार थे। तेजस्वी अभी विधान सभा में विपक्ष के नेता हैं। राजद , अभी भी सदन में सबसे बड़ी पार्टी है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 11 -12 जुलाई को पटना में इस गठबंधन को चुस्त कर लिया। उन्होंने मुख्यमंत्री नितीश कुमार के साथ सुबह नाश्ता और रात मुख्यमंत्री के राजकीय आवास पर बातचीत पूरी कर ली। फिर उन्होंने ऐलान किया कि दोनों दल आम चुनाव साथ लड़ेंगे। भाजपा अध्यक्ष ने दावा किया कि एनडीए राज्य में लोक सभा की सभी 40 सीटें जीतेगा । उन्होंने खुल कर नहीं बताया कि गठबंधन में शामिल दलों में से कौन दल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। अलबत्ता , अमित शाह ने जोर देकर कहा कि नितीश कुमार ही बिहार में एनडीए का ' चेहरा ' हैं। उन्होंने कहा कि नए लोकसभा चुनाव के लिए निर्धारित समय नहीं बढाए जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अगले लोकसभा चुनाव के बाद मोदी जी के प्रधानमंत्रित्व में ही एनडीए की सरकार फिर बनेगी। अमित शाह ने पटना में यह भी कहा कि मोदी सरकार ने बिहार को पिछले चार वर्ष में 4. 35 लाख करोड़ रूपये दिए हैं। उनके अनुसार भाजपा अभी देश के 70 प्रतिशत हिस्से पर शासन कर रही है और उसके 11 करोड़ सदस्य हैं। अमित शाह जुलाई 2017 में नितीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व में जनता दल -यूनाइटेड और भाजपा की गठबंधन सरकार बनने के बाद पहली बार बिहार गए थे।
एनडीए में , केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और केंद्रीय मंत्री मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी शामिल है। ये दोनों दल 2014 का पिछ्ला लोक सभा चुनाव भाजपा के संग लड़े थे। दोनों दल , मोदी सरकार में भी शुरू से शामिल हैं। जनता दल -यूनाइटेड ने 2014 का लोकसभा चुनाव एनडीए के संग के बजाय , अपने दम पर लड़ा था। तब उसने सिर्फ दो सीटें जीती थी। वह मोदी सरकार में अभी तक शामिल नहीं है. उसने उसने राज्य विधान सभा का 2015 में हुआ पिछ्ला चुनाव राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बना कर भाजपा के खिलाफ लड़ा था। लेकिन उसने बाद में 2017 में राजद और कांग्रेस की जगह भाजपा को साथ लेकर नई साझा सरकार बना ली। लोकसभा के 2014 के चुनाव में जनता दल -यूनाइटेड , एनडीए में शामिल नहीं था. तब उसने प्रधान मंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी को एनडीए का दावेदार घोषित करने के विरोध में एनडीए से किनाराकसी कर ली थी। पिछली बार जेडीयू ने बिहार की कुल 40 सीटों में से दो , भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लिए छोड़ 38 पर उम्मीदवार खड़े किये थे। वह सिर्फ दो जीत सकी. भाकपा , कोई भी सीट नहीं जीत सकी थी।
बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें है। इन्हीं सीटों में से भाजपा को अपने लिए और एनडीए के घटक दलों के बीच आपसी बँटवारा करना है। भाजपा ने लोकसभा के 2014 के चुनाव में बिहार में बेहरतीन सफलता हासिल की थी। एनडीए , संसद के बाहर सिर्फ बिहार में कायम है , जिसका एक लंबा इतिहास है। बिहार से सांसद रहे जॉर्ज फर्नांडीस और शरद यादव एनडीए के कन्वीनर रहे हैं। इस बार कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है पर अंदरूनी हल्कों से मिली जानकारी के मुताबिक़ इस बार भाजपा खुद की सीटों से एक अधिक , कुल 16 लोकसभा सीटें जेडीयू के लिए छोड़ने को राजी हो गई है। एनडीए में शामिल दल राजी हो गए तो भाजपा , पिछली बार एलजीपी की जीती 6 और आरएलएसपी की जीती तीन सीटें छोड़ शेष 15 सीटों पर ही अपने प्रत्याशी खड़ा करने सहमत है। है। पिछली बार भाजपा ने 30 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किये थे , जिनमें से 22 जीते थे। संकेत हैं कि भाजपा को अपने निवर्तमान लोक सभा सदस्यों में से कुछ के टिकट अबकी बार काटना होगा। वे कौन होंगे इसके कोई संकेत नहीं हैं।
एलजीपी पिछली बार 7 सीटों पर चुनाव में उतरी थी , पर एक हार गई। आएलएसपी , तीन सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसने तीनों जीती थी। वह इस बार एनडीए के बांकि दलों की रजामंदी के बगैर सबसे ज्यादा सीटें जेडीयू के लिए छोड़ने की पेशकश के खिलाफ है। आएलएसपी के कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि के अनुसार बिहार के सिर्फ 1. 5 प्रतिशत मतदाता नितीश की पार्टी के साथ हैं। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पुत्र एवं एलजीपी सांसद चिराग पासवान ने खुल कर कुछ नहीं कहा है। लेकिन उनके राजद नेता तेजस्वी यादव के साथ संपर्क साधने के कयास लग रहे हैं। बताया जाता है कि एलजीपी की चुनावी दिशा , चिराग पासवान ही तय करते है। पिछली बार भी उन्हीं के दबाब में रामविलास पासवान , आम चुनाव से ऐन पहले फरवरी 2014 में एनडीए में शामिल हुए थे।
हाल में बिहार में लोकसभा की अररिया और विधान सभा की जोकीहाट समेत कुछेक सीटों पर उपचुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल की स्थिति मजबूत हुई है। अररिया लोकसभा सीट दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन के निधन से रिक्त हुई थी जो जोकीहाट विधानसभा सीट से भी पांच बार जीते थे। जोकीहाट विधान सभा उपचुनाव में राजद के शाहनवाज आलम ने जनता दल -यूनाइटेड के मुर्शीद आलम को परास्त कर दिया। वह वह दिवंगत तस्लीमुद्दीन के पुत्र हैं। उन्ही के अग्रज भाई , सरफराज आलम के इस्तीफा से यह सीट रिक्त हुई थी। 2016 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से जनता दल -यूनाइटेड प्रत्याशी के रूप में जीते सरफराज आलम ने मार्च 2018 में राजद में शामिल हो जाने पर इस्तीफ़ा दे दिया था। यह विधान सभा सीट अररिया लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है। अररिया में मार्च 2018 में हुए उपचुनाव में राजद प्रत्याशी के रूप में सरफराज आलम ने जनता दल -यूनाईटेड समर्थित भाजपा प्रत्याशी को भारी शिकस्त दी थी। राजद नेता तेजस्वी यादव प्रस्तावित महागठबंधन की धूरि के केंद्र के रूप में उभरे हैं। लेकिन उन्हें महागठबंधन की तरफ से अपना ' चेहरा ' अभी तक घोषित नहीं किया गया है। इस बीच , ' स्पीक मीडिया ' चुनाव सर्वेक्षण एजेंसी की 17 जुलाई को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ तेजस्वी यादव अभी बिहार में सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं। रिपोर्ट में अगले आम चुनाव में एनडीए को सिर्फ सात सीट और महागठबंधन को 29 सीट मिलने की संभावना व्यक्त करते हुए कहा गया है कि इसे 61 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन मिल सकता है।
* सीपी नाम से ज्ञात लेखक एक न्यूज एजेंसी के मुम्बई ब्यूरो के विशेष संवाददाता पद से सेवानिवृत्त। द सिटिज़न -हिंदी के लिए आर्थिक , राजनीतिक , सामाजिक हालात पर लिखते हैं।