एयर इंडिया बेचने की नाकामी के मायने
वर्ष पहले भारत की पहले इंडियन एयरलाइंस का एयर इंडिया में विलय किया गया
एयर इंडिया को बेचने की कोशिशें फिर टांय टांय फिस्स हो गई हैं। लगातार बढ़ते घाटे और कर्ज में डूबी एयर इंडिया में भारत सरकार की हिस्सेदारी का 76 प्रतिशत विनिवेश करने के लिए मोदी राज की कोशिश पहले ही नाकाम साबित हो गई थी. अब मोदी सरकार ने मान लिया है कि इसे बेचने का सही समय नहीं है। हाल में मोदी सरकार के वित्त मंत्री पीयूष गोयल , परिवहन मंत्री नितिन गडकरी , नागरिक विमानन मंत्री सुरेश प्रभु के एक मंत्री -समूह और बड़े अधिकारियों के संग पूर्व वित्त्त मंत्री अरुण जेटली की बैठक में इसे ' चुनावी साल ' में न बेचने का निर्णय कर उसे चलाने के लिए धन मुहैया कराने का निश्चय किया गया। मंत्री समूह ने एयर इंडिया के ' सफल रूपांतरण ' पर जोर दिया ताकि यात्रियों को वैश्विक स्तर की सुविधाएं उपलब्ध हो सके. सरकार एयर इंडिया में और 3,200 करोड़ रुपये की पूंजी लगा सकती है। लगातार घाटे में चल रही इस एयरलाइन में सरकार अप्रैल 2012 में घोषित बेलआउट पैकेज के तहत पहले ही 26,000 करोड़ रुपये से अधिक की पूंजी डाल चुकी है। एयर इंडिया में नए सिरे से पूंजी डालना सरकार के लिए जरूरी हो गया है। उसके कर्जदाता कंसर्टियम के तीन बैंकों , देना बैंक, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक और इलाहाबाद बैंक ने इस एयरलाइन को आगे 'लाइन ऑफ क्रेडिट' देने से इनकार कर दिया है। ' लाइन ऑफ क्रेडिट' बैंक और कर्जदार के बीच होने वाला एक समझौता होता है जिसके तहत कर्जदार कभी भी तय सीमा के मुताबिक उधारी ले सकता है।
किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई
सरकार ने पहले ही स्वीकार किया था कि एयर इंडिया के स्वामित्व की हिस्सेदारी बेचने के प्रस्ताव पर बोली लगाने किसी ने ' एक्सप्रेशन ऑफ़ इंटरेस्ट ' दाखिल नहीं किया। विनिवेश के उक्त विफल प्रयास में एयर इंडिया , उसकी किफायती दरों की सहायक कम्पनी , एयर इंडिया एक्सप्रेस और एयर इंडिया स्टैट्स एयरपोर्ट सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड की भी हिस्सेदारी बेचने की बात थी। विनिवेश के लिए इसी बरस 31 मई को निर्धारित समय की समाप्ति तक किसी भी खरीददार की कोई बोली नहीं आयी थी। विनिवेश की भावी योजना पर इस मंत्री समूह को निर्णय लेना था। इसके सम्मुख कई विकल्प पेश किये गए थे। एयर इंडिया के कर्मचारियों के वेतन भुगतान में देरी तथा कम्पनी की विनिवेश योजना में अनिश्चितता माहौल में हाल में केंद्रीय नागर विमानन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने कहा था कि मोदी सरकार , एयर इंडिया को पर्याप्त नकदी और वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराएगी। एयरलाइन की महाप्रबंधक (औद्योगिक संबंध) मीनाक्षी कश्यप ने कर्मचारियों को लिखे एक पत्र में जून माह में बकाया वेतन का भुगतान करने का भरोसा दिलाया था। एयर इंडिया के पायलटों की संस्था ने प्रबंधन को एक पत्र में लिखा था कि उनके बीच वित्तीय अनिश्चितता , निराशा, चिंता और तनाव की स्थिति है जिससे विमानन कंपनी की सुरक्षा पर असर पड़ता है।
सरकार ने कर्ज में डूबी इस कंपनी को शेयर बाजार में सूचीबद्ध करने के विकल्प पर भी विचार किया लेकिन यह भी संभव नहीं हो सका। कंपनी को सूचीबद्ध करने से पूंजी की उगाही हो सकती थी लेकिन इसके लिए भारत के प्रतिभूति एवं शेयर बाजार के नियमन के लिए बनी संस्था , सेबी के मानदंडों के अनुरूप एयर इंडिया को तीन वर्ष तक लाभ की स्थिति में रहना आवश्यक है।एयर इंडिया पर मार्च 2017 तक करीब 50,000 करोड़ रुपये का कर्ज था। एयर इंडिया के विनिवेश प्रस्ताव का कंपनी के कर्मचारियों के विभिन्न यूनियन विरोध कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थक स्वदेशी जागरण मंच ने एयर इंडिया कंपनी का प्रारम्भिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने का सुझाव देते हुए कहा था कि एयर इंडिया को बचाने और इसके सक्षम संचालन की जरूरत है। आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग के अनुसार एक विकल्प यह भी था कि सरकार अपनी शत-प्रतिशत हिस्सेदारी बेच दे।एयर इंडिया के लिए नियुक्त सलाहकार , ' ईवाई ' ने कहा कि कंपनी में अल्पांश हिस्सेदारी सरकार के पास रखने जाने का प्रावधान इसकी बिक्री की राह में सबसे बड़ी बाधा बनी। बिक्री में अड़चन के अन्य आधार एक साल तक कर्मचारियों को कंपनी के साथ बनाए रखने का प्रावधान भी था।
भारत की सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइंस , इंडिगो ने शुरु में एयर इंडिया को खरीदने में रूचि दिखाई थी लेकिन बाद में उसने अपने हाथ खींच लिए।इसकी बड़ी वजह सरकार द्वारा एयर इंडिया के अंतरराष्ट्रीय ऑपरेशंस को अलग से न बेचना था. एयर इंडिया कई सालों से घाटे में चल रही है। इसे चलाए रखने के लिए कई बेलआउट पैकेज भी दिए गए। लेकिन इसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ.
यह एनडीए सरकार में एयर इंडिया को बेचने की दूसरी कोशिश है जो सफल नहीं हुई। पिछ्ली बार की कोशिश अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में 2001 में की गई थी। उस सरकार ने तो बाकायदा पहली बार एक विनिवेश मंत्रालय ही खोल दिया था जिसके मंत्री अरुण शौरी बनाये गए थे। यह भारत की ध्वजवाहक राजकीय विमानयात्रा -सेवा कम्पनी है जिसकी स्थापना देश की आज़ादी से पहले 1932 में टाटा एअरलाइन्स के रूप मैं की गई थी।इसके बेड़ा में अभी मुख्यतः एयरबस और बोईंग कम्पनी के 31 विमान है। बड़े में और 40 विमानों को लाने के आदेश दिए जा चुके हैं। उसकी भारत में 12 और देश के बाहर 39 नगरों की नियमित उड़ानें हैं। कुछ वर्ष पहले भारत की घरेलु राजकीय विमान सेवा कम्पनी , इंडियन एयरलाइंस का एयर इंडिया में विलय कर दिया गया था.
* सीपी नाम से ज्ञात लेखक स्वतंत्र पत्रकारिता और शोध कर रहे है.