वित्त आयोग को संदर्भित विषय राज्यों के लिए चिंताजनक
वित्तीय अधिकारों को और अधिक केंद्रीकृत करने की कवायद
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा गठित 15 वें वित्त आयोग को संदर्भित विचारणीय विषयों में संघीयतावाद के बजाय केन्द्रीयतावादी तत्व चिंताजनक हैं. माना जा रहा है कि इन संदर्भित बिंदुओं का उद्देश्य सर्वांगीण कराधान में संघ - राज्यों की हिस्सेदारी घटाना, राज्यों को उपलब्ध वित्तीय दायरा को सिकोड़ना और राज्यों पर केंद्र की शर्तों को जबरिया लागू करना शामिल है. नए वित्त आयोग को केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा बढाकर 42 प्रतिशत करने के पिछले वित्त आयोग की अनुशंसा की समीक्षा भी करने कहा गया है. नए वित्त आयोग से यह भी पूछा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत राजस्व घाटा उठाने वाले राज्यों को सहायता जारी रखनी चाहिए अथवा नहीं.
आयोग के विचारणीय विषयों में राज्य सरकार - प्रायोजित कार्यक्रमों पर केंद्र सरकार - प्रायोजित कार्यक्रमों को तरजीह देने का पूर्वाग्रह शामिल है. वास्तविकता यह है कि इन कार्यक्रमों में से अधिकतर राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में है. सन्दर्भ - बिंदुओं में इस बात का उल्लेख भी है कि ' लोकलुभावन ' कार्यक्रमों को हतोत्साहित किया जाए. इन दोनों बात से जो नीतियां तैयार होंगीं उनसे राज्यों को उपलब्ध कराये जाने वाले संसाधनों में निश्चय ही और कमी ही आएगी. केंद्र सरकार की साफ मंशा है कि वित्त आयोग, राजस्व उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम समीक्षा कमेटी की रिपोर्ट में दी गयी अनुशंसाएं लागू करे. वित्त आयोग के गठन के निर्धारित सन्दर्भों -शर्तों तथा उसके कामकाज के तौर -तरीके से लेकर उसकी रिपोर्ट में दी गयी अनुशंसाओं को लेकर जब -तब सवाल उठते रहे हैं. लेकिन बहुत कम ही राजनीतिक दल इन सवालों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं.
स्वतंत्र भारत में केंद्रीय राजसत्ता और संघ -राज्यों के बीच राजस्व बँटवारा और दोनों के वित्तीय संबंधों के नियमन के लिए सांविधिक प्रावधानों के तहत भारतीय वित्त आयोग की स्थापना वर्ष 1951 में की गयी थी. वित्त आयोग का गठन पाँच वर्ष के कार्यकाल के लिए किया जाता है. मौजूदा आयोग का गठन2017 में किया गया था. इसके अध्यक्ष भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त अधिकारी एन.के. सिंह नियुक्त किये गए. वह नीति आयोग में रूपांतरित योजना आयोग के पूर्व सदस्य भी हैं. आयोग के अन्य सदस्यों में प्रोफ़ेसर अनूप सिंह, अशोक लाहिड़ी और भारतीय प्रशासनिक सेवा के ही पूर्व अधिकारी शक्तिकांत दास शामिल हैं.
एनके सिंह ने 16 जुलाई को कोलकाता में कहा कि ' हमें राष्ट्रपति की ओर से दिए गए विचारणीय विषयों से बंधे रहना होता है. हम उन राज्यों को लाभ देने पर विचार कर सकते हैं जिन्होंने जनसांख्यिकी प्रबंधन में अच्छी प्रगति हासिल की है. वित्त आयोग में कोई ऐसा कदम नहीं उठाया जाता है जो जनसंख्या के मुताबिक भारांक देने से रोकता हो. यह क्षमता प्रदान करता है और समानता को बढ़ावा देता है. 15वां वित्त आयोग राज्यों और केंद्र के बीच संसाधनों का बंटवारा करते समय जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य को पूरा करने वाले राज्यों को प्रोत्साहन राशि देने पर विचार कर सकता है. श्री सिंह के अनुसार पहली बार राज्यों के बीच वित्तीय समझदारी को बढ़ावा देने के अलावा, वित्त आयोग के विचारणीय विषयों में संविधान के अनुच्छेद 293(3) के उपयोग के लिए खाका तैयार करना भी शामिल किया गया है. अनुच्छेद 293(3) के तहत राज्यों को निर्धारित मात्रा से अधिक कर्ज लेने की अनुमति देता है. उन्होंने कहा कि वृद्घि के लिए कॉर्पोरेट कर्ज का प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है.
लेकिन आयोग के विचारणीय विषय में स्पष्ट कहा गया है कि संसाधनों का बंटवारा करने के लिए आयोग अब से 1971 की जनगणना के आंकडों का नहीं बल्कि 2011 की जनगणना के आंकडों का उपयोग करेगा. इस पर चार राज्यों ने यह कहते हुए आपत्ति जताई है कि उन्होंने वर्षों से जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए काम किया है औरउसमें सफलता भी हासिल की है.14वें वित्त आयोग ने जनसांख्यिकीय बदलावों को दर्शाने के लिए विभिन्न कारकों की जांच के बाद 2011 के जनसंख्या आंकड़ों का चुनाव किया था और 1971 के जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर दिए जाने 17.5 प्रतिशत भारांक के अतिरिक्त 10 प्रतिशत अतिरिक्त भारांक दिया गया था. 15वें वित्त आयोग के लिए भारांक का निर्णय अभी तक नहीं किया गया है. मौजूदा आयोग की सिफारिशें 1 अप्रैल, 2020 से 5 वर्ष की अवधि के लिए लागू होंगी. वर्ष 2015 में केंद्र ने 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को मंजूर किया था और विभाज्य हिस्सेदारी को 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया था.
मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमनियन का कहना है कि गुड्स एन्ड सर्विसेज टैक्स ( जीएसटी ) लागू हो जाने के बाद भारत एक साझा बाज़ार हो गया है और कराधान के अधिकार और अधिककेंद्र के पाले में आ गए हैं. छोटे और गरीब राज्यों के करों का आधार बढ़ा है.ऐसे में वित्त आयोग को भारत की विशिष्ट परिस्थियों के मद्देनज़र,यूरोप के आर्थिक एकीकरण के परिणामों से सबक लेने चाहिए. उनके अनुसार 15 वें वित्त आयोग के पास अवसर है कि वह केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय प्रबंधों का ढांचा सहकारी संघीयतावाद बढ़ानेके लिएनए सिरे से बनाये. उनके मुताबिक़ देश के आर्थिक रूप से उन्नत दक्षिण और पिछड़े उत्तरी राज्यों के बीच केअंतर जैसीकोई बातवित्त आयोगके सम्मुख अड़चन नहीं होना चाहिए.
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने आयोग के समक्ष कहा कि राज्य को नशाबंदी के चलते सालाना 9864 करोड़ रुपयों का नुकसान उठाना पड़ रहा है. वित्त आयोग को गुजरात, बिहार जैसे राज्यों में लागू नशाबंदी के बदले बोनस देनाचाहिए. गुजरात केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा मौजूदा 42 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने के पक्ष में है.आयोग के अध्यक्ष एनके सिंहने कहा है कि गुजरात का आर्थिक विकास अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय है.आयोग राज्य के लगातार घटते कर्ज से काफी प्रभावित है.गुजरात के समक्ष जीएसटी की वसूली सबसे बड़ी चुनौती है.
छत्तीसगढ़ ने केंद्रीय वित्त आयोग से कहा है कि नक्सल प्रभावित पिछड़े जिलों के स्थायी वित्त पोषण का फार्मूला होना चाहिए. राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष चंद्रशेखर साहू ने दिल्ली में 15 वें राष्ट्रीय वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह से मुलाकात कर प्रदेश के नगरीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के लिए भी विशेष वित्तीय पैकेज की मांग की. बातचीत के दौरान राष्ट्रीय वित्त आयोग के अध्यक्ष सिंह ने कहा कि उनके पास यह रिपोर्ट है कि कई राज्य सरकारें प्रदेश के वित्त आयोगों की सिफारिशों को लागू नहीं कर रही हैं और इसकी वजह से राज्यों के मानव विकास सूचकांक गड़बड़ा रहे हैं.
पश्चिम बंगाल कीमुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आशा व्यक्त की है कि 15 वांवित्त आयोगपश्चिम बंगाल को अधिक राशि आवंटित करेगा. उन्होंने आयोग के साथ बैठक मेंपश्चिम बंगाल सरकार द्वारा शुरू की गयी योजनाओं की जानकारी दी. उन्होंने आयोग से आग्रह किया कि वहवाम मोरचा के शासनकाल के दौरान लिये गये कर्ज से उबारने में मदद करे. वित्त आयोग के अध्यक्षश्री सिंह ने राज्य सरकार के विभिन्न आर्थिक सुधारों की सराहना की.उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल पर पिछली वाम मोरचा सरकार द्वारा लिये गये ऋण को चुकाने के एवज में प्रत्येक वर्ष राज्य के राजस्व का अधिकांश हिस्सा केंद्र सरकार ले लेती है, अगर इस कर्ज का पुनर्गठन किया जाये तो यहां राज्य सरकार पूंजी खर्च को और बढ़ा पायेगी. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा उठाये गये इस प्रस्ताव को वित्त आयोग ने गंभीरता से लिया है और इसे वह अपनी रिपोर्ट में पेश भी करेंगे.
रांची से मिली ख़बरों के मुताबिक़ 15वें वित्त आयोग की टीम अगस्त के पहले सप्ताह झारखंड का दौरा करने वाली है. झारखंड सरकार ने आयोग के समक्ष 2020-25 के लिए केंद्र से स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, परिवहन, शहरी और ग्रामीण विकास की विभिन्न आधारभूत संरचनाओं को पूरा करने के लिए 1.50 लाख करोड़ रुपये राशि की मांग उठाने की तैयारी की है.
इस बीच , बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग पूरी तरह तर्कसंगत है. बिहार हर मायने में पिछड़ा है. प्रति व्यक्ति आय के मामले में भी बिहार निचले पायदान पर है. बिहार हर साल प्राकृतिक आपदाएं झेलता है. सभी पार्टियों ने बिहार को विशेष दर्जे देने की मांग का समर्थन किया है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों से सर्वसम्मति से पारित किया जा चुका है. यह मांग वर्ष 2006 से ही उठ रही हैं. पंद्रहवें वित्त आयोग के सामने भी इस मांग को उठाया जाएगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि 14 वें वित्त आयोग की सिफारिश के बाद ऐसा समझा जाने लगा कि किसी राज्य को अब विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना संभव नहीं है. कुछ समय पहले 15वें वित्त आयोग को ज्ञापन सौंपने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई गई. इसमें सभी राजनीतिक दलों ने राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग का समर्थन किया. लेकिन वित्त आयोग की टीम का जुलाई में बिहार दौरा स्थगित हो गया है. आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह की अध्यक्षता में 20 सदस्यीय टीम के आने का कार्यक्रम स्थगित हो जाने की पुष्टि उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने की है. दौरा स्थगित होने के कारणों का खुलासा नहीं किया गया है. उपमुख्यमंत्री ने कहा कि वित्त आयोग के बिहार दौरा की नयी तिथि जल्द तय की जायेगी.
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी ) की हैदराबाद में मई 2018 में संपन्न 22 वीं पार्टी -कांग्रेस में वित्त आयोग पर पारित प्रस्ताव में उन बारीक बातों को इंगित किया गया है जो भारत के संविधान के अनुसार देश में संघीयतावाद की रक्षा के लिए आवश्यक हैं. प्रस्ताव में कहा गया है कि मौजूदा वित्त आयोग को संदर्भित बिंदुओं में जनसंख्या के आधार -वर्ष में प्रस्तावित परिवर्तन भी शामिल है. यह उन राज्यों की सरकारों के वित्त पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों में बेहतर काम किया है. ऐसा कोई भी कदम राज्यों के राजस्व घाटा और ऋण - सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) के अनुपात को कम करके राज्यों के उपलब्ध वित्तीय दायरे की घटोत्तरी ही करेगा. जनसंख्या -भार की गणना के लिए आधार वर्ष 1971 से 2011 करना संसद और राष्ट्रीय विकास परिषद् के प्रस्तावों तथा राष्ट्रीय जनसंख्या नीति में दिए गए वचन - आश्वासनों के विरुद्ध है. इनसे ख़ास तौर पर दक्षिण भारत के राज्यों के साथ ही बंगाल , ओडिसा और पंजाब जैसे उन राज्यों को भी नुकसान होगा जिन्होंने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण कार्यक्रम असरदार तरीके से लागू किये हैं. प्रस्ताव में कहा गया है कि कोई कार्यक्रम लोकलुभावन है या नहीं यह निर्णय वित्त आयोग को नहीं बल्कि राजनीतिक स्तर पर लिया जाना है. विभिन्न वित्त आयोगों की अनुशंसाओं के बावजूद केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय असंतुलन और बिगड़ा ही है. 11 वित्त आयोग के बाद से केंद्रीय अनुदान राज्यों पर थोपी जाने वाली शर्तों के अनुरूप होते हैं. जीएसटी लागू किया जाना राज्यों के संसाधन जुटाने की क्षमताओं पर प्रहार है. भाजपा सरकार 15 वें वित्त आयोग का इस्तेमाल वित्तीय अधिकारों को और अधिक केंद्रीकृत करने के लिए कर रही है. पार्टी ने विभिन्न राज्यों को संग लेकर वित्त आयोग के गठन के सन्दर्भ -शर्तों में संशोधन लाने के लिए केरल की वाम जनवादी सरकार के प्रयासों की सराहना की है. प्रस्ताव में कहा गया है कि इस सिलसिले में दक्षिण भारत के राज्यों के वित्त मंत्रियों की अप्रैल 2018 में हुआ सम्मलेन पहला बड़ा कदम था. लेकिन यह सांविधिक आयोग स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से काम करे सके इसके लिए व्यापक जन समर्थन की दरकार है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और आर्थिक, राजनीतिक, और सामाजिक मसलों पर बेबाकी से लिखते हैं.)