अभी-अभी एम्स से प्रोफेसर संजय कुमार से मिलकर लौटा हूं। संजय कुमार महात्मा गांधी सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी, मोतिहारी में प्रोफेसर हैं, जहां चार दिन पहले उनपर भीड़ ने हमला किया। ऐसा कहा गया कि संजय कुमार ने अटल बिहारी वाजपेयी के मरने पर उन्हें फासिस्ट कहते हुए पोस्ट लिखा था। हालांकि मामला बस इतना भर नहीं है। संजय कुमार महात्मा गांधी सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी मोतिहारी में लगातार राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे हैं और समाजिक न्याय से लेकर भ्रष्टाचार तक के मुद्दे पर लगातार मुखर रहे हैं। वहां के वीसी ( कुलपति)पर गबन से लेकर फर्जी डिग्री के आधार पर नौकरी लेने तक का आरोप है और संजय कुमार अपने साथियों के साथ वीसी के मनमानेपन के खिलाफ अपनी आवाज उठाते रहे हैं।
संजय कुमार पर हमले को उसी आवाज को दबाने की कोशिशों के तौर पर देखा जा रहा है। अगर आप हमले में शामिल आरोपियों का नाम देखेंगे तो स्पष्ट है कि यह सवर्ण गुंडों द्वारा जातीय विद्वेष के आधार पर किया गया हमला है। संजय के साथी आरोप लगा रहे हैं कि वीसी एक खास कट्टर धार्मिक विचारधारा को विश्वविद्यालय में प्रश्रय दे रहा है और इसी की आड़ में करोड़ों रूपये के भ्रष्टाचार आदि का धंधा भी चल रहा है। वीसी अरविंद अग्रवाल पर न सिर्फ जातिवादी होने का आरोप है बल्कि हाल ही में बीबीसी में उनके महिला विरोधी बयान भी आये हैं। बहरहाल प्रोफेसर संजय पर वीसी अरविंद अग्रवाल के गुंड़ो द्वारा हमला करवाने का आरोप है और बहाना अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु पर किया गया आलोचनात्मक पोस्ट को बनाया गया। इस घटना की भी वीडियो अपराधियों ने खुद बनाकर इसे वाइरल भी किया है।
दूसरी तरफ कल बिहार से एक वीडियो आया है। इस विडियो में बिहिया, आरा में एक महिला को भीड़ नंगा करके मारती हुई नजर आ रही है। पूरा बिहिया कस्बा इस भीड़ की हिंसा का मूक गवाह बना है। लोग पूरी घटना का वीडियो तो बना रहे हैं लेकिन कोई भी उस महिला को बचाने के लिये आगे आता नहीं दिख रहा है। मर्द समाज का एक भयानक लिजलिजा रूप उस विडियो में सामने आया है। पूरी घटना दिल दहलाने वाली है। ऐसा लग रहा है कि पूरा समाज महिला के खिलाफ इस अपराध में खड़ा है या अपना मूक समर्थन दे रहा है। बाद में यहां तक कहा गया कि वो महिला रेड लाइट एरिया से थी, इसलिए उसके साथ ऐसा किया गया। तो क्या रेड लाइट का होने की वजह से किसी के साथ कुछ भी किया जा सकता है? क्या किसी रेड लाइट में रहने वालों का कोई कानूनी व मानवीय अधिकार नहीं होता? बिहार में पिछले सालों में यह अकेली घटना नहीं है। ऐसा लगा रहा है कि बिहार का समाज सुन्न पड़ गया है या उसे कोई फर्क पड़ना बंद हो गया है, बिहार का समाज इन अपराधों पर मौन रहकर इनका मूक समर्थक बन गया है।
यही मौन समर्थन तब भी देखने को मिला जब हाल ही में मुजफ्फरपुर में दर्जनों बच्चियों के साथ यौन शोषण का मामला सामने आया। जिस तरह सालों तक बड़े-बड़े नेताओं, अधिकारियों और पूरे सिस्टम ने मिलकर बच्चियों के साथ यौन-शोषण किया और उसके बाद मुख्यमंत्री से लेकर बिहार के आम समाज तक में इस घटना पर बहुत दिनों तक चुप्पी छाई रही, वह मर्माहत करने वाली घटना है। रिपोर्ट बताते हैं कि सिर्फ मुजफ्फरपुर ही नहीं बल्कि दूसरे शेल्टर होम में भी बच्चियों के साथ यौन-शोषण का आरोप लगाया गया है। लेकिन कहीं कोई उफ्फ तक नहीं है।
कुछ दिन पहले इसी तरह रामनवमी के समय बीजेपी समर्थित नेताओं की शह पर जिस तरह बिहार के गाँव-गाँव में तलवार के साथ यात्राएँ निकाली गयीं, दंगे किये गए, अल्पसंख्यक समुदाय के घरों को जलाया गया और आरोपी खुलेआम घूमते हुए भड़काऊ बयान देता रहा और प्रशासन चुपचाप बैठी रही। यह समय चिंताजनक है। बिहार से अब हर दूसरे दिन भीड़ द्वारा हिंसा किये जाने की घटनाओं की खबर आती रहती है। ऐसा लगता है बिहार की नीतीश-मोदी की सरकार असफल हो चुकी है। जदयू-बीजेपी की सरकार में बिहार में कानून व्यवस्था पूरी तरह असफल हो चुकी है।
लेकिन फिर भी बिहारी समाज चुप है। बिहार की मीडिया में इस महाजंगलराज के बारे में कोई चर्चा तक नहीं हो रही है। एक खास नफरत करने वाली राजनीति के लोग खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे हैं, भीड़ की हिंसा को जायज ठहरा रहे हैं और उसी का नतीजा है कि बिहिया में महिला के साथ हुई क्रूर घटना भी सामान्य सी खबर बनकर रह गयी है।
यह सब देखना डरावना है। उस बिहार में ऐसी घटनाएँ होना, उस समाज का ऐसी घटनाओं पर चुप रह जाना दुखद है जो कभी समाजवादी राजनीति और मूल्यों के लिये जाना जाता था, जहां आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ी गयी, जहां के लोगों में राजनीति चेतना सबसे ज्यादा मानी जाती है।
क्या हो गया उस राजनीतिक चेतना को? कौन है जो बिहार को हिंसा की तरफ ढकेल रहा है?
बिहारी समाज आखिर चुप क्यों है ?
क्या हो गया है बिहार को?