राजस्थान में पार्टियां मुस्लिम महिलाओं को टिकट देने से भागती है

राजस्थान में पार्टियां मुस्लिम महिलाओं को टिकट देने से भागती है

Update: 2018-10-24 13:20 GMT

देश के दूसरे हिस्से की तरह राजस्थान की सियासत में भी राजनीतिक दलों ने मुस्लिम महिलाओं को उम्मीदवार बनाने के लिये अभी तक दरियादिली कतई नही दिखाई है। लेकिन मामूली तौर पर जब जब मुस्लिम महिलाओं को उम्मीदवार बनने का मौका मिला है तब तब उनके परिणाम काफी उत्साहवर्धक आये हैं।

राजस्थान में भाजपा को छोड़कर कांग्रेस सहित अन्य दलों ने मुस्लिम महिलाओं को कभी कभार उम्मीदवार बनाकर मौका दिया। लेकिन विधायक केवल कांग्रेस दल से अभी तक बन पाई हैं। 2008 में हुये राजस्थान विधानसभा चुनाव मे तीन मुस्लिम महिला विधायक पहली दफा एक साथ जीत कर आई थी। इसके अलावा कभी कभी कोई एक या दो चुनाव जीत पाती थी। लेकिन अधिकांश समय राजस्थान की विधानसभा मुस्लिम महिलाओं की अनुपस्थिति में ही बनती रही है।

राजस्थान मे लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली शुरु होने से पहली दफा 1985 मे राजीवगांधी लहर के समय चूरु से हमीदा बेगम व टोंक से जकीया इनाम कांग्रेस के निशान पर विधायक जीत कर आई। उसके बाद जकीया इनाम 1998 व 2008 मे भी टोक से विधायक बन पाई ओर मंत्री का ओहदा भी सम्भाला। लेकिन 2013 में उन्हें टिकट से वंचित होना पड़ा था। जकीया इनाम के अलावा हमीदा बेगम 1985 मे चुरु से , दिग्गज नेता रहे तैयब हुसैन मेव की पुत्री जाहिदा 2008 में कामा व पुष्कर से नसीम अख्तर भी कांग्रेस से विधायक बन चुकी है। इनमे नसीम मंत्री व जाहिदा संसदीय सचिव भी रही है। हमीदा बेगम भी संसदीय सचिव रह चुकी है।

हालांकि उक्त मुस्लिम महिला नेताओं के अलावा कांग्रेस ने तीजारा से सारिया खान को भी एक दफा उम्मीदवार बनाया था। लेकिन वो चुनाव जीत नही पाई थी। बाकी हमेशा राजनीतिक दल मुस्लिम महिलाओं ने उम्मीदवार बनाने मे हमेशा से कंजूसी बरते रहे है। कांग्रेस से अब टिकट मांग रही जकीया, हमीदा व नसीम को टिकट मिलना मुश्किल बता रहे है। जाहिदा को कामा से टिकट मिल सकती है। जबकि मानवेंद्र सिंह के काग्रेस में आने के बाद मरहुम अब्दुल हादी की पुत्र वधू सफिया खान की टिकट पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे है। कांग्रेस के अलावा सीकर से भाजपा की टिकट मांग रही मदरसा बोर्ड अध्यक्ष मेहरुन्निसा टांक को टिकट मिलता है तो वो मजबूत दावेदार साबित होगी। वही फतेहपुर से कांग्रेस की टिकट किसी मुस्लिम को ना मिलने पर बसपा की तेजतर्रार व क्वालीफाईड बेसवा सरपंच जरीना खान भी मजबूत उम्मीदवार बन सकती है। चुनाव जीत का विश्वास जताते हुये जरीना खान ने कहा कि फतेहपुर के चुनावी समीकरण उसके माफिक है एव उनके सरपंच काल मे किये रिकॉर्ड विकास कार्यो की झलक लेकर मतदाताओं की अदालत मे जाकर जीत के लिये मत पाने की भरपूर कोशिश कर रही हैं।

मुस्लिम महिलाओं को उम्मीदवार बनने का अवसर यदि पार्टिंयां दें तो परिणाम उत्साहवर्धक आ सकते है।

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