विशाल व्यक्तित्वों को आमने सामने खड़ा करने की कैसी राजनीति है भाई !
विशाल व्यक्तित्वों को आमने सामने खड़ा करने की कैसी राजनीति है भाई !
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की तुलना जिन लोगों की प्रतिमाओं के साथ जिस तरह की भाषा में की गई हैं, वह चुभने वाली है। सरदार वल्लभ भाई पटेल के व्यक्तित्व और कृतित्व को लेकर लोगों की अपनी अपनी राय हो सकती है। आप सरदार पटेल का मुल्यांकन कहां खड़े होकर कर रहे हैं, यह दो तरह की राय के बीच अंतर को स्पष्ट कर सकता है। इसमें भी दो राय नहीं है उनके व्यक्तित्व को महान कहा जाए। लेकिन 31 अक्टूबर 2018 को गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा का अनावरण करने का विज्ञापन देश के विभिन्न समाचार पत्रों में छपा है , उसकी भाषा पर गौर करें। सरदार पटेल के विशाल व्यक्तित्व जितनी विशालकाय प्रतिमा। एक खास तरह का बौद्धिकता हमारे समाज में सक्रिय है जो काब्यत्मकता के साथ ही सक्रिय रहती है। किसी भी तरह की तुलना के लिए काव्यात्मकता यानी कवि की शैली का एक खास मकसद होता है। वह मनोरंजन का एक भाव पैदा करता है और एक तरह का आकर्षण पैदा करता है। लेकिन काव्यात्मकता में ये जो प्रयास होता है वह किसकी कीमत पर होता है और क्यों होता है, इसका विश्लेषण किया जाना चाहिए।
जब कोई एक बात कहीं जाती है तो उसके भीतर ढेर सारी सतहें होती है। छोटे वाक्यों वाली भी कोई बात एक पहाड़ की परतों की तरह होती है । किसी बात में परतों की पहचान तथ्य,मनोरंजन, आकर्षण, सुख दुख पैदा करने का इरादा, सोचने समझने की गति पैदा करने की कोशिश आदि के रुप में की जा सकती है।यह बात को पिरोने वाले पर निर्भर करता है कि वह अपनी बात के भीतर किस परत को सबसे मजबूत करके दूसरी किसी कमजोर परत को छिपा ले जाएं।यही बात बनाने वाले की कौशलता होती है।
काव्यात्मकता अपने समाज में किसी परत को दबाने के काम ज्यादा आने लगी है।सरकार पटेल का विशाल व्यक्तित्व और उसकी प्रतिमा से तुलना का क्या मतलब है? क्या प्रतिमा की उंचाई ज्यादा से ज्यादा कर देने से ही व्यक्तित्व की विशालता स्थापित होती है? क्या इस प्रतिमा के बनने से पहले सरदार का व्यक्तित्व विशाल नहीं था? दरअसल काव्यात्मकता की राग शैली जब मनोरंजन के मंच की तरह राजनीति के लिए के बरती जाने लगती है तो वह ज्यादा गंभीर हालात की सूचक होती है।क्योंकि इसका कोई अंत नहीं होता है कि वह कहां से कहां पहुंच जाए। तुकबंदी के लपेटे में किस किस को ले लें।यह एक ऐसे शोर की तरह लगने लगती है जिसमें बहुत सारी आवाजों को दबाने की कोशिश दिखने लगती है।
सरदार पटेल की प्रतिमा की तुलना दुनिया भर में स्थापित जिन लोगों की प्रतिमाओं के कद को सामने रखकर की गई है, उन पर जरा गौर करें। पहली बात तो इस तरह की तुलना का क्या मतलब हो सकता है। हर देश के लिए विशाल व्यक्तित्व के मायने अलग हो सकते हैं। लेकिन दुनिया और मानवता के लिए स्थापित व्यक्तित्व का कोई देश नहीं होता। महात्मा बुद्ध को किस देश का विशाल व्यक्तित्व कह सकते हैं और किस राजनीतिक पार्टी का नेतृत्व कह सकते हैं? सरदार की विशाल प्रतिमा उनके विशाल
व्यक्तित्व के अनुरुप हैं, यह किसी देश की कोई पार्टी और कोई सरकार कहें तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। लेकिन एक देश के विशाल व्यक्तित्व की तुलना दुनिया भर के विशाल व्यक्तित्व और विशाल संदेशों और मानवता की स्वतंत्रता के प्रतीकों से करने का मकसद कोई है तो वह बेहद बौना होने का संदेश दे रहा है।विशाल विज्ञापन के डिजाईन बनाने की कौशलता और विचारधारा की व्यापकता में फर्क होता है भाई ।