राजस्थान में मुस्लिम उम्मीदवार भी दमदारी से चुनाव लड़ते नजर आ रहे हैं

दिग्गज नेता सीट बचाने में हमेशा की तरह सक्रिय नजर आये।

Update: 2018-12-02 13:32 GMT

राजस्थान विधानसभा सभा चुनाव के 22-नवम्बर को नामांकन वापसी के बाद उभरी तस्वीर से कांग्रेस-भाजपा के अलावा रहे मुस्लिम उम्मीदवार कुछ अन्य दलो के निशान पर चुनाव लड़ रहे हैं।वे सभी अपने स्तर पर तो दमदारी के साथ आगे बढते नजर आ रहे है लेकिन उनके पक्ष मे उनकी पार्टी के दिग्गज नेता व लगती सीट से उनके दल के अन्य उम्मीदवार उनकी मदद करने को कतई तैयार नजर नहीं आ रहे है। इस मायने में केवल लक्षमण बेनीवाल एक अपवाद कहें जा सकते हैं। इसी कारण मुस्लिम उम्मीदवार के जीतने में शंका के बादल हमेशा मंडराते रहते है।

अब तक अक्सर यह देखा गया है कि मुस्लिम बहुल सीटो से मुस्लिम की बजाय दलो के दिग्गज नेता ही उम्मीदवार बनकर उन सीटों से आ जाते है। दूजा वो अपनी लगती सीट से बने मुस्लिम उम्मीदवार को उसके स्वयं के भरोसे छोड़कर अपना व अपनों का चुनावी हित साधने मे व्यस्त होकर रह जाते है।

कांग्रेस ने पंद्रह व भाजपा के एक उम्मीदवार के अलावा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी व अन्य दलो के निशान पर चुनाव लड़ रहे कुछ मुस्लिम उम्मीदवार काफी मजबूत स्थिति मे नजर आ रहे है। लेकिन उनके भविष्य का फैसला अभी भी गर्भ मे छुपा हुआ है। भाजपा के टोंक से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार परिवहन मंत्री यूनूस खां का मुकाबला कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट से होने के कारण यूनूस खान आखिर में कमजोर होते नजर आयेंगे। सीकर से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के उम्मीदवार वाहिद चोहान व मसूदा से उम्मीदवार पूर्व विधायक कयूम खान अपने अपने क्षेत्र में कांग्रेस भाजपा के उम्मीदवारों पर चुनाव नजदीक आते आते काफी भारी पड़ते दिखाई देगे। दूसरी तरफ लाडनू से अम्बेडकर मोर्चा के तस्लीम आरिफ मुन्ना व मंडावा से बसपा उम्मीदवार अनवार खान भी संघर्ष को कड़ा बनाने मे लगें हुये है।

राजस्थान में कांग्रेस ने 2013 के मुकाबले एक उम्मीदवार कम करके कुल पंद्रह मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी रणक्षेत्र मे उतारे है। जिसमे मारवाड़ के बाडमेर जिले के शिव विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मंत्री आमीन खा, जेसलमैर जिले की पोखरण विधानसभा से पूर्व विधायक शाले मोहम्मद व जोधपुर की सूरसागर क्षेत्र से मोहम्मद अय्यूब को टिकट दिया। उक्त तीनो ही मुस्लिम सिंधी बिरादरी से ताल्लूक रखने के साथ साथ आमीन व शाले मोहम्मद चुनाव जीत सकते है। जोधपुर शहर की मुस्लिम बहुल सीट सरदारपुरा से जब से अशोक गहलोत ने विधानसभा चुनाव लड़ना शूरु किया है तब से उन्होंने सूरसागर सीट से बदल बदल कर मुस्लिम को उम्मीदवार तो हरदम बनाया है जहां कि मुस्लिम मतदाता नाम मात्र के हैं। लेकिन उसको चुनाव नहीं जीता पाने के परिणाम स्वरूप सईद अंसारी व जैफू खा अनेक दफा चुनाव हारते रहे है। अबके भी सूरसागर के परीणाम वही ढाक के तीन पात आना तय माना जा रहा है। जबकि गहलोत के उदय के पहले जोधपुर शहर से मुस्लिम विधायक बनते व चुनाव जीतते रहे है।

इसी तरह अजमेर सम्भाग की पुष्कर क्षेत्र से पिछला चुनाव बुरी तरह हारने वाली कांग्रेस उम्मीदवार पूर्व मंत्री नसीम अख्तर मैदान मे भाजपा उम्मीदवार के सामने कड़े संघर्ष मे उलझी नजर आ रही है। मकराना से पूर्व विधायक जाकिर हुसैन भी भाजपा से मुकाबले में है तो कभी कांग्रेस फिर भाजपा व अब कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर नागोर से चुनाव लड़ रहे विधायक हबीबुर्रहमान के सामने भाजपा उम्मीदवार के अलावा कांग्रेस के बागी शमशेर खान भी मुसीबत बने हुये है।

शेखावाटी जनपद की चूरु सीट से रफीक मण्डेलीया का सीधा मुकाबला भाजपा के दिग्गज नेता व लगातार छ दफा विधायक बनने वाले राजेन्द्र राठौड़ से माना जा रहा है। कांग्रेस के पहले उम्मीदवार रहे हुसैन सैय्यद के भाजपा मे शामिल होकर राठौड़ के समर्थन मे आने से मण्डेलीया की मुसीबत बढ़ने लगी है। लेकिन किसान मतदाताओं का साथ मण्डेलीया को अभी भी मजबूत बनाये हुये हैं। फतेहपुर शेखावटी से कांग्रेस उम्मीदवार हाकम अली को पहले माकपा के उम्मीदवार आबीद हुसैन, बसपा उम्मीदवार जरीना खान व आप उम्मीदवार तैयब अली से घर मे संघर्ष करने के बाद भाजपा की उम्मीदवार सुनीता जाट को मात देने की चुनौती स्वीकार करना होगा। देखना होगा कि फतेहपुर का चुनाव जाट व गैर जाट के मध्य होगा या फिर मुस्लिम व गैर मुस्लिम का चुनाव होगा। हार जीत इसी भी निर्भर रहेगा।

मेवात क्षेत्र के अलवर जिले के तीजारा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार पूर्व मंत्री दूरु मियां को सपा के फजल हुसैन के अलावा भाजपा से झूझना पड़ रहा है। पिछले 2013 के चुनाव मे बसपा उम्मीदवार की हैसियत से फजल हुसैन दूसरे नम्बर पर तो कांग्रेस के दूर्रु मियां तीसरे नम्बर पर रहे थे। एवं भाजपा चुनाव जीती थी। मेव समाज से नहीं होने के कारण अबके दूर्रु मियां मुकाबले से बाहर होते नजर आ रहे है। रामगढ़ से पहले उम्मीदवार रहे जुबेर खान के दो दफा लगातार चुनाव हारने के कारण उनकी पत्नी सफीया खान को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाकर मैदान मे उतारा है। लेकिन रामगढ मे भाजपा काफी एकजुट नजर आ रही है। इसी तरह भरतपुर के कामा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार जाहिदा खान के मुकाबले भाजपा ने गोपालगढ़ मस्जिद गोली कांड के आरोपी को मैदान मे उतार सम्प्रदाय आधार पर चुनाव बनाने की कोशिश करती नजर आ रही है।

जयपुर शहर की मुस्लिम बहुल आदर्श नगर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार रफीक खान व आमीन कागजी भी बतौर कांग्रेस उम्मीदवार कड़े संघर्ष मे फंसे दिख रहे है। इन दोनो उम्मीदवारो को लगती सीट से लड़ने वाले कांग्रेस उम्मीदवार कितनी मदद कर पाते है, उस मदद पर इनकी जीत काफी निर्भर बताते है। इसी तरह हाड़ोती की सवाईमाधोपुर सीट से बाहरी कांग्रेस उम्मीदवार दानीस अबरार को उनका घमंड व अक्खड़पन नूक्सान पहुंचाता नजर आ रहा है। जबकि सवाईमाधोपुर से किसी स्थानीय मुस्लिम को उम्मीदवार बनाया जाता तो उसके चुनाव जीतने के काफी संभावना हो सकती थी। दानीस पिछला चुनाव इसी वजह से हार चुके है। कांग्रेस की रिवायत के मुताबिक कोटा शहर की मुस्लिम बहुल सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता शांति धारीवाल स्वयं चुनाव लड़ रहे है। धारीवाल ने बगल की लाडपुरा सीट से पहले कांग्रेस टिकट पर दो दफा चुनाव हार चुके नईमुद्दीन गूड्डू की पत्नी गुलनाज को उम्मीदवार अपनी जीत पक्की करने के लिये बनाया है।

कांग्रेस का गैर मुस्लिम दिग्गज नेता वो ही बनता है जो चालाकी के साथ मुस्लिम बहुल सीट को अपना चुनाव क्षेत्र बनाकर चुनाव लड़ने का जूगाड़ बैठा लेता है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट का स्वयं गूज्जर होते हुये किसी गूज्जर बहुल सीट से लड़ने की बजाय मुस्लिम बहुल सीट टोंक से चुनाव लड़ना स्टीक उदाहरण है। पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत सहित प्रदेश के अधिकांश कांग्रेस नेता ऐसे करते हुये दिग्गज नेता का खिताब हासिल कर चुके हैं।दूसरी तरफ इतिहास पर नजर डाले तो पाते है कि मुस्लिम को कांग्रेस टिकट तो दे देती है लेकिन पूरे चुनावी समय में कांग्रेस व उस दल के नेता उन मुस्लिम उम्मीदवारो को उनके हाल पर छोड़ कर केवल अपने व अपनो के लिये मदद करते रहते है। जिसके कारण मुस्लिम उम्मीदवारों को असहाय की तरह केवल अपने बलबूते पर चुनाव लड़ने को मजबूर होते हुये काफी हानि उठानी पड़ती है।
 

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