आदिवासी क्षेत्रों से साफ़ हुई भाजपा!
छत्तीसगढ़ के चुनावों में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित क्षेत्रों में भाजपा का बुरा हाल
कांग्रेस पार्टी ने 68 सीटों के साथ छत्तीसगढ़ के 90 – सदस्यीय विधानसभा में स्पष्ट बहुमत पा लिया. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सिर्फ 15 सीटों से संतोष करना पड़ा.
छत्तीसगढ़ विधानसभा में, कुल 29 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. राज्य की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जनजाति का हिस्सा 31 प्रतिशत है.
प्रत्येक जिले में समुदायों की जनसंख्या के आधार पर चुनाव आयोग यह तय करता है कि किस सीट को अनुसूचित जाति या जनजाति के लिए आरक्षित किया जाना है.
वर्ष 2013 में, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 18 भाजपा को मिलीं और शेष 11 कांग्रेस के खाते में गयीं.
लेकिन इस बार तस्वीर बिल्कुल ही बदल गयी. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 29 सीटों में से सिर्फ तीन पर ही भाजपा कामयाब हो पायी. बाकी 25 सीटें कांग्रेस की झोली में गयीं. कुल मिलाकर, कांग्रेसी उम्मीदवारों के जीत के अंतर में भी बढ़ोतरी हुई. सिर्फ रामानुजगंज, समरी और पाली तानाखर सीटों पर ही पार्टी के मतों में गिरावट दर्ज की गयी.
भाजपा ने बिन्द्रनावागढ़ सीट पर, कम मतों के साथ ही सही, अपना कब्ज़ा बरकरार रखा और रामपुर एवं दंतेवाडा सीटें कांग्रेस से छीन ली.
जिन 29 सीटों पर पहले भाजपा और कांग्रेस के बीच बंटवारा हुआ करता था, उसमें अब एक तीसरे पक्ष भी आ गया है. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) के अजित जोगी ने मरवाही सीट से बड़े अंतर से जीत हासिल करते हुए इसे कांग्रेस से छीन लिया. इस सीट पर कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही.
इन 29 सीटों में से 6 तथाकथित रेड कॉरिडोर में पड़ती हैं. इनमें से 5 सीटें – बस्तर, बीजापुर, कांकेर, जसपुर, और नारायणपुर – कांग्रेस ने जीतीं.
पूरे राज्य में कांग्रेस ने 43 प्रतिशत मत हासिल किये, जबकि भाजपा ने 33 प्रतिशत. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) – बसपा गठबंधन 12 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही.
साफ़ है कि भारी संख्या में आदिवासी वोट कांग्रेस के पक्ष में मुड़ गया. (आरएसएस / भाजपा आदिवासियों को वनवासी कहकर संबोधित करते हैं). इसका कारण जानने के लिए द सिटीजन ने स्वामी अग्निवेश और पूर्व पत्रकार रुचिर गर्ग से बात की.
अग्निवेश के मुताबिक, “आदिवासी लंबे समय से नाराज चल रहे थे और उन्होंने चुपचाप रमण सिंह सरकार से बदला ले लिया, उनका उत्पीडन और शोषण किया गया. आदिवासियों के जेहन में एक मजबूत कल्लूरी – विरोधी भावना पल रही थी. कल्लूरी बस्तर एवं सरगुजा इलाके में हुए कई अपराधों के जिम्मेदार थे. आदिवासियों को नक्सली या माओवादी होने के आरोप में जेलों में ठूंस दिया गया. हजारों आदिवासी दुर्ग जेल में बंद हैं, जहां उन्हें बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं. वे अपने परिजनों से नहीं मिल सकते और न ही अपना वकील खड़ा कर सकते.”
उन्होंने आगे कहा, “न सिर्फ आदिवासी बल्कि दलित एवं अन्य पिछड़े वर्ग के लोग भी इस सरकार से बेहद नाराज थे. उनका रमण सिंह पर आरोप था कि वे उनके हितों को नजरअंदाज करके सिर्फ अगड़ी जातियों एवं छत्तीसगढ़ के बाहर के लोगों को फायदा पहुंचा रहे हैं.”
भ्रष्टाचार के बारे में बोलते हुए अग्निवेश ने कहा, “रमण सिंह सरकार आदिवासियों के बीच काम करने वाली नलिनी सुन्दर और सुधा भारद्वाज सरीखे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भगा रही थी. इससे आदिवासियों के बीच जबरदस्त असंतोष फैला.”
अग्निवेश ने बताया कि वे खुद भूतपूर्व पुलिस महानिरीक्षक एस आर पी कल्लूरी के नेतृत्व में किये जाने वाले हमलों का शिकार हुए हैं. उन्होंने कहा, “रमण सिंह सरकार इन इलाकों से नक्सलियों को भगाने के नाम पर हजारों करोड़ रूपए के भ्रष्टाचार में लिप्त थी.”
इस लिहाज से यह मतदान “ कांग्रेस के पक्ष में होने से ज्यादा भाजपा के खिलाफ था”.
पूर्व पत्रकार रुचिर गर्ग, जो हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए, ने भी इससे मिलताजुलता विचार प्रकट किया. उन्होंने कहा, “15 वर्षों के नाराजगी का असर है यह चुनाव परिणाम. भाजपा के 15 वर्षों के शासन में विकास का मतलब था आदिवासियों से उनकी स्वायत्तता छीनना और उन्हें जल, जंगल और जमीन से बेदखल करना. और तो और, अध्यादेश लाकर कानून में बदलाव करते हुए उन्हें उनके वनाधिकार से वंचित करना.”
उन्होंने आगे जोड़ा,”आदिवासियों को उनके बुनियादी लोकतान्त्रिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा था. उन्होंने गैरकानूनी तरीके से आदिवासियों की जमीन को औद्योगिक घरानों को देने कि कोशिश की. उदाहारण के लिए, रमण सिंह सरकार ने नए एनडीएमसी प्लांट के निजीकरण का प्रयास किया.”
श्री गर्ग ने बताया,”भाजपा ने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का साम्प्रदायीकरण करने की कोशिश की. अपने हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने इसे हिन्दू बनाम इसाई का मुद्दा बनाने का प्रयास किया. यह लोगों को पसंद नहीं आया.”