आर्थिक आरक्षण : मोदी सरकार का एक और नया जुमला ?

पूजा प्रसाद

Update: 2019-01-13 11:39 GMT

केन्द्र सरकार ने सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने का एक विधेयक पारित किया है, जिसे लोकसभा और राज्यसभा, दोनों ही जगह, बड़ी आसानी से हरी झंडी मिल गई। अगर कुछ साल पीछे देखें, तो समय-समय पर सरकारों ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने के बहाने अपनी राजनीतिक रोटियां सेकी हैं। हालांकि, हर बार सर्वोच्च न्यायालय इस तरह के फैसलो को खारिज करती रही है। अब एक बार फिर, केन्द्र सरकार ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान किया है। अपनी घोषणा में उन्होंने कहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकरी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा।

पहले भी हो चुके हैं आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के प्रयास

ये पहली बार नही है, जब सरकार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की बात कह रही है। इससे पहले भी ऐसे फैसले लिए गए है। 1991 में मंडल आयोग के ठीक बाद प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण का फैसला लिया था। वर्ष 1992 में अदालत ने इस फैसले को रद्द कर दिया था।

इसी तरह, 1978 में बिहार में आर्थिक आधार पर सवर्णों को 3 फीसदी आरक्षण दिया था। बाद में, अदालत ने इस फैसले को भी रद्द कर दिया था।

वर्ष 2015 में, राजस्थान की सरकार ने सरकारी नौकरियों में 14 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था जिसे दिसंबर 2016 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया। हरियाणा में भी इसी तरह सवर्ण आरक्षण खत्म कर दिया गया था।

गुजरात सरकार ने 2016 में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया था जिसमें छह लाख रुपये सालाना आय से कम वाले परिवारों को शामिल किये जाने की नीति बनाई गयी थी। अगस्त 2016 में गुजरात उच्च न्यायालय ने इस फैसले को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था।

सवर्ण आरक्षण के लिये पूरी करनी होंगे ये शर्तें

मौजूदा विधेयक में, केन्द्र सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए कुछ शर्तें भी लागू की हैं। इसके तहत जिन लोगों की आय 8 लाख रुपये सालाना से कम हो, उन्हें इस फैसले का लाभ मिलेगा। इसके अलावा जिन लोगों के पास 5 हेक्टेयर से कम की जमीन होगी उन्हें भी 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा। जिन सवर्णों के पास 1000 वर्गफुट से कम का घर होगा, जिनके पास निगम की 109 गज से कम अधिसूचित जमीन होगी, 209 गज से कम की गैर-अधिसूचित जमीन होगी और जो भी किसी आरक्षण के अंतर्गत नहीं आते होंगे उन सभी को इसका लाभ मिलेगा।

गेंद सर्वोच्च न्यायालय के पाले में

इस मसले को सर्वोच्च न्यायालय ले जाया गया है, जहां इसकी सुनवाई अभी नहीं हुई है। माना जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय में इस पर अगले हफ़्ते सुनवाई हो सकती है।

यूथ फॉर इक्वालिटी नाम के संगठन की याचिका में दावा किया गया है, "यह संविधान संशोधन पूरी तरह से उन संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन करता है जिसके तहत इंदिरा साहनी मुक़दमे में नौ न्यायधीशों ने कहा था कि आरक्षण का एकमात्र आधार आर्थिक स्थिति नहीं हो सकती। इस तरह, यह संशोधन कमज़ोर है और इसे रद्द किए जाने की ज़रूरत है क्योंकि यह केवल उस फ़ैसले को नकारता है।”

सामान्य पिछडा एवम अल्पसंख्यक संस्था के जिला सचिव रविन्द्र सिंह कहते हैं, “ये जो हो रहा है ये पूरी तरह वोट की राजनीति है। जो शर्तें सामान्य वर्ग के लिए लगाई गई है, वही सरकार को दूसरे वर्ग के लिए भी लगानी चाहिए चाहे वो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या फिर अन्य पिछड़ा वर्ग के हों।“

आगे वो कहते हैं, “जब सब समानता की बात करते हैं, तो जातिगत आधार पर आरक्षण नहीं होना चाहिए। जो मलाईदार परत (क्रीमी लेयर) में हैं, उन्हें हटाया जाना चाहिए और मलाईदार परत (क्रीमी लेयर) की सीमा तय की जानी चाहिए। सरकार को 49.5 प्रतिशत आरक्षण के दायरे में ही इस पूरे प्रावधान को समाहित करना चाहिए। हम आरक्षण के विरोध में नहीं हैं, पर जो क्रीमी लेयर में हैं, उन्हें हटाया जाए और आर्थिक आधार पर ही आरक्षण हो ।”

बिरसा-अंबेडकर-फूले स्‍टूडेंट एसोसिएशन (बापसा) के पूर्व अध्यक्ष और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में रिसर्च कर रहे प्रवीण थलापल्ली कहते हैं कि सरकार के पास कोई आंकड़ा नही है । उन्होंने कोई आयोग नही बैठाया और इस बारे में कोई बैठक नही बुलायी । पूरे साढ़े चार सालों मे उन्होंने कोई बात नही की और अब वह आचानक अंतिम दिनो में इसे लाने की बात कर रही है। सदन में इसपर कोई चर्चा नही की गई है।

प्रवीण जोड़ते हैं, “अभी जब मौजूदा सरकार को ये लग रहा की वो चुनाव हार जायेगी, तो वह बिना कोई अध्ययन किये इसे पेश कर रही है। जब सरकार कोई भी नयी नीति लाती हैक, तो उसके पीछे एक पूरा शोध होता है और शोध को पुष्ट करने के लिए आंकड़े होते हैं। पर यहाँ तो कोई चर्चा ही नही हुई। अगर सरकार को इसपर वाकई कुछ रना होता, तो वह इस बारे में अध्ययन करती, समिति बिठाती और आंकड़े इकठ्ठा करती। पर ऐसा कुछ भी नही हुआ।“

हमारे संविधान में दो आधारों पर आरक्षण की बात कही गयी है। पहला शैक्षणिक आधार पर और दूसरा सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण। अब केंद्र सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की बात जनता के सामने रखी है जिसके लिए उसे संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में बदलाव करना पड़ेगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आरक्षण व्यवस्था का उद्देश्य जाति को खत्म करना था, यह गरीबी उन्मूलन अभियान नहीं है। यह भी समझने की जरुरत है कि अभी जिस आरक्षण को आर्थिक आधार पर दिये जाने की बात की जा रही है, उसमें सिर्फ सवर्णों को ही लाभ मिलेगा । इस तरह यह आरक्षण आर्थिक आधार पर नहीं बल्कि जाति आधारित ही होगी।
 

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