“बजट में किसानों के लिए झुनझुना तक नहीं”
“साफ़ है इस सरकार के लिए कृषि संकट कोई मुद्दा नहीं”
किसान संगठनों एवं विशेषज्ञों ने सरकार की एक ऐसा बजट पेश करने के लिए कड़ी आलोचना की है जिसमें गंभीर कृषि संकट पर ध्यान देने की मांगों को नजरअंदाज किया गया है और उसकी जगह किसानों को 6000 रूपए सालाना, जोकि 500 रूपए महीना और 15 रूपए रोजाना बैठता है, देने का प्रस्ताव है. अखिल भारतीय किसान सभा के नेता अशोक धवले ने कहा, “इतनी राशि तो एक प्याला चाय तक के लिए भी पर्याप्त नहीं हैं. यह एक बेमतलब और जले पर नमक छिड़कने जैसा कदम है.”
केन्द्रीय वित्त मंत्री पीयूष गोयल द्वारा इस सरकार का इस लोकसभा में आखिरी वार्षिक अंतरिम बजट पेश किये जाने के बाद द सिटिज़न से बात करते हुए श्री धवले ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ऋण माफी को ‘लॉलीपॉप’ करार देने की पहले की टिप्पणी की अगली कड़ी के रूप में, ‘उन्होंने अब जो पेशकश की है वह लॉलीपॉप से भी बदतर है’. यह उन किसानों का अपमान है, जो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप ऋण माफी और फसलों की बेहतर कीमतों के लिए आंदोलन कर रहे हैं. ”
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा, जो किसानों के लिए एक निश्चित वार्षिक आय की वकालत करते रहे हैं, इस उद्देश्य के लिए आवंटित राशि पर हैरान थे. उन्होंने कहा, “वे गंभीरता से यह कैसे सोच सकते हैं कि 500 रुपये प्रति माह का समर्थन किसानों को भयानक कृषि संकट से बाहर निकालने में और किसानों की आत्महत्या की संख्या को कम करने में मदद करेगा?”
इस घोषणा का स्वरुप भी भेदभावपूर्ण है. श्री शर्मा ने कहा कि यह कदम दो हेक्टेयर से कम भूमि वाले छोटे किसानों के लिए है. और यह 40% बटाईदार किसानों की अनदेखी करता है. श्री धवले ने कहा कि बजट में बटाईदार किसानों और कृषि श्रमिकों की दुर्दशा के बारे में न तो कोई चिंता और न ही उसके बारे में कोई प्रावधान है. इसमें आदिवासियों के वन अधिकारों की मांग की भी अनदेखी की गयी है.
किसान नेता किसानों द्वारा छेड़े गये उन दीर्घकालिक संघर्षों में सबसे आगे रहे हैं, जिसके कारण महाराष्ट्र में लंबे मार्च हुए, राजस्थान में सड़क जाम किया गया, पूरे देशभर में विरोध और धरना - प्रदर्शन हुए, लाखों किसानों ने खुद और देशभर में फैले किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व करते हुए दिल्ली तक मार्च किया. बड़ी संख्या में महिलाएं उन विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुईं, जो मूल रूप से कर्जमाफी की माँगों और फसलों की कीमतों में डेढ़ गुना बढ़ोतरी पर टिकी हुई थीं. श्री धवले ने कहा, "किसान दान की मांग नहीं कर रहा है, वह अपने अधिकारों की मांग कर रहा है क्योंकि सिस्टम से बाहर रखे जाने की वजह वह कर्ज में हैं."
श्री धवले ने कहा "एक लॉलीपॉप का बेतुका पैरोडी काम नहीं करने वाला है." उन्होंने और श्री शर्मा, दोनों, ने हैरानी जतायी कि सरकार इसके लिए चिंतित तक भी नहीं हैं. क्योंकि "इस घोषणा से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है." मीडिया के एक वर्ग द्वारा दर्ज किए गए जमीन से जुड़ी कुछ शुरुआती प्रतिक्रियाओं में किसानों द्वारा प्रति माह 500 रुपये दिये जाने का उपहास करते हुए यह पूछा जा रहा था कि आखिर सरकार इसके जरिए क्या करने की कोशिश कर रही थी. वे गुस्से से पूछ रहे थे, "इस कदम से कैसे हमारी मदद होगी?"
श्री धवले ने कहा कि यह साफ़ है कि इस सरकार को किसानों के बारे में कोई चिंता नहीं है और वह गहराती कृषि संकट के प्रति उदासीन और असंवेदनशील है. श्री शर्मा ने कहा कि यह साफ़ है कि इस बजट के जरिए मध्यम वर्ग के मतदाताओं को लुभाया गया है. मध्यम वर्ग को काफी कुछ दिया गया है, जबकि किसानों को लगभग न के बराबर दिया गया है. उन्होंने बताया कि उड़ीसा और तेलंगाना की दो राज्य सरकारें किसानों को प्रति वर्ष 10,000 रुपये की निश्चित आय दे रही हैं, जो कि केंद्र सरकार द्वारा अब तक दी गई 6000 रुपये से अधिक है। हालांकि, वह खुश थे कि बजट ने किसानों के लिए आय को एक प्रकार के सिद्धांत के रूप में तय करने की आवश्यकता को स्वीकार किया है।
श्री धवले ने साफ़ – साफ़ कहा कि इस बजट ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकार कि नज़र में छोटे किसानों के लिए कोई जगह नहीं है. उन्होंने कहा, '' लोकसभा चुनाव से पहले यह आखिरी बजट था, सरकार के पास मांगों को पूरा करने और संदेश भेजने का एक अवसर था, लेकिन इसने उस पर भी गौर नहीं किया. और कुछ नहीं तो उसे देने के लिए हर दिन 15 रुपये ही मिले!"
किसान नेता ने खेद व्यक्त करते हुए कहा, ”यह साफ़ है कि कृषि संकट इस सरकार के लिए एक मुद्दा तक भी नहीं है."