मानवाधिकार आयोग की भाषा में सरकारी बयानों की मिलावट को लेकर चिंता

मानवाधिकार आयोग की भाषा में सरकारी बयानों की मिलावट को लेकर चिंता

Update: 2019-05-09 13:06 GMT

देश में संवैधानिक एवं स्वायत संस्थाओं में मूल्यों के स्तर पर गिरावट चिंताजनक हालात में हैं। पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (PUDR) ने इसी सिलसिले में गढ़चिरौली की विस्फोट की घटना पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एन.एच.आर.सी.) के बयान की तरफ ध्यान खींचा है और उसे अनुचित करार दिया है।

पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स के अनुसार 1 मई, 2019 को गढ़चिरौली के कुरखेड़ा तहसील में माओवादियों द्वारा किये गए एक विस्फोट में सी-60 पुलिस बल के 15 जवान और एक गाड़ी चालक की घटना स्थल पर मृत्यु हो गई थी। इसी हिंसक घटना का खंडन करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा एक बयान जारी किया गया। हिंसा की वारदात एक निंदनीय घटना है और पीयूडीआर इससे सहमत नहीं है लेकिन मानवाधिकारों की रक्षा करने वाले आयोग द्वारा जिस तरह की भाषा का उपयोग किया गया है, वह चिंताजनक है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि इस विस्फोट में जान गवांने वाले 'शहिदों का सर्वोच्च बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा'।

पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स के अनुसार आयोग का ऐसा कहना ना तो केवल एक पक्षपाती नज़रिया सामने रखता है बल्कि हिंसाकर्मियों की तरफ हिंसक प्रतिक्रिया को भी उकसाता हुआ दिखता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना एक राज्य संस्था के रूप में अधिकारों के संरक्षण और मानवाधिकार उल्लंघन के मामले की रोकथाम करने के लिए की गई है चाहे मानवाधिकार की अवहेलना करने वाला स्वयं राज्य ( सत्ता) ही क्यों न हो। आयोग पर यह भी जवाबदेही है कि हर किसी के अधिकारों की रक्षा की जाए चाहे। वो एक स्वतंत्र नागरिक हो, भारत में आने वाला कोई दूसरे मूल का व्यक्ति हो, जेल में सज़ा काट रहा कोई कैदी हो या कोई माओवादी हीं क्यों ना हो। किसी एक पक्ष को बलिदानी बता कर दूसरे पक्ष के ऊपर पलटवार को जायज़ दिखाना, आयोग की गरिमा के ख़िलाफ़ जाता है।

पीयूडीआर के मुताबिक हर बार देखा गया है कि ऐसे हमले के बाद सरकार एक रटी-रटाई बात बोलती है कि जवानों के बलिदान व्यर्थ नहीं जायेंगे और इन बयानों का इस्तेमाल राजनैतिक लाभ बटोरने के लिए किया जाता है। आयोग की भाषा का सरकारी भाषा से मिला जुला होना संस्था की स्वायत्ता पर सवाल उठा सकता है। इसके साथ ही, आगे होने वाली राज्य हिंसा को भी ऐसे बयानों का हवाला दे कर वैध दिखाने की कोशिश की जा सकती है। जब आयोग में सरकारी बयानों की मिलावट दिखने लगे तो यह अपेक्षा कैसे की जा सकती है की आयोग राज्य द्वारा किये जाने वाले क़ानूनी और मानवाधिकार उल्लंघनों के ख़िलाफ़ कार्यवाही कर पाएगा। इसीलिए संस्था के रूप में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए आयोग को ‘बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा’ जैसे बयान से बचते हुए शांति स्थापित करने की बात करनी चाहिए थी।

पी.यू.डी.आर की ओर से सचिव दीपिका टंडन और शाहाना भट्टाचार्य ने अपेक्षा जाहिर की हैं कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को अपनी बातें काफी संयमित रूप से रखनी चाहिए और निष्पक्ष तौर पर मानवाधिकारों की रक्षा करने की दिशा में काम करना चाहिए।
 

Similar News

Uncle Sam Has Grown Many Ears

When Gandhi Examined a Bill

Why the Opposition Lost

Why Modi Won